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तिब्बत में मुक्ति प्राप्त तीन भूदासों की कहानी
2011-12-08 13:16:52

बातचीत के समय तानजङ स्नेहपूर्वक अपने पास खेल रहे पोता व पोती को देख रहे हैं, उसके चेहरे पर सुख की मुस्कान खिली है।

जानांग कांउटी के निवासी वांगत्वे और पुराने फाला जागीर के पूर्व भूदास तानजङ का जीवन जब बहुत सुधरने जा रहा था, तब लेग्पो क्षेत्र के पूर्व भूदास वांगत्वे का जीवन उतना अच्छा नहीं बदला था। वर्ष 1960 में यानी तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार लागू किए जाने के दूसरे साल में वांगत्वे को जीवन मृत्यु की परीक्षा का सामना करना पड़ा था। उस समय गांव में किसी ने उन पर भूदास मालिक होने का झूठारोप लगाया और बंदुक तान कर मौत की सज़ा देने की धमकी की। वांगत्वे को डर गयी और इस झूठ आरोप से असह्य हो गया। अंत में उन्हों ने झूठे से आरोपित हुए अन्य कुछ लोगों के साथ भारत की ओर भाग जाने का फैसला किया।

विदेश की ओर भागने के रास्ते में वांगत्वे और साथियों को तीन चीनी हान जाति के कार्यक्रताओं ने पीछा कर पकड़ा। उसी वक्त वे समझते थे कि अब जान से मारे जाने से नहीं बचेगा। लेकिन हान जाति के कार्यकर्ताओं ने उन्हें जरा भी प्रपाड़ित नहीं किया, उलटे उन से असलियत पूछी और उन्हें लेग्पो लौटने का सुझाव दिया। इस घटना की चर्चा में वांगत्वे ने कहा:

"विदेश को भाग जाने के रास्ते में हमारे गांव में कार्यरत हान जाति के तीन कार्यकर्ताओं ने हमारा पिछा करते हुए पास पहुंचने के बाद यह पूछा था कि अखिर क्या हुआ। जांच पड़ताल के बाद उन्हों ने मुझ से कहा कि आप एक नेक आदमी है, और तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के लिए अपना योगदान किया था। इन बातों से मुझे बड़ी खुशी हुई और उनके साथ लेग्पो वापस लौटा"

इसके बाद वांगत्वे का सुखमय जीवन सचे माइने में शुरू हुआ। सरकार ने उन्हें भूमि वितरित की और खाद्य पदार्थ भी दिया। वांगत्वे ने शादी करने के बाद सात बच्चों का जन्म दिया और वह अपने हाथों से अपना सुखमय जीवन बनाने लगा। उन्होंने कहा कि उसी साल जो साथी वापस नहीं लौटे थे, उनमें से अधिकांश लोग विदेश की भूमि में मर गए। वांगत्वे ने कहा:

"उस साल, विदेश में भाग गए मेरी उम्र वाले सभी लोगों की मृत्यु हो चुकी है। मैं सोचता हूँ कि अगर मैं वापस नहीं लौटता, तो मैं भी मर जाता, क्योंकि विदेश में उन का जीवन बहुत दुभर है, लम्बी उम्र नहीं जी सकते हैं। सौभाग्य की बात है कि उस समय मैं हान कार्यकर्ता के साथ वापस आया है।"

वापस लौटने के बाद कई सालों तक वांगत्वे लेग्पो गांव के कृषि सहकारी उत्पादन दल के नेता रहे, फिर पशु पालन क्षेत्र के प्रमुख और गांव वासी समिति के प्रधान बने। उन्होंने कहा कि अपने श्रम का फल अपने को जाता है और फिर कभी दूसरे के लिए परिश्रम करने की जरूरत नहीं है। वांगत्वे ने कहा:

"लोकतांत्रिक सुधार के बाद मैं जो काम करना चाहता था, वही करता था। किसी भी काम से आय अवश्य मिलती है। सब लाभ अपने हाथ में आएगा"

गांववासी समिति के प्रधान के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वांगत्वे श्रम करने पर डटे रहते हैं। हर दिन सुबह घर में बौद्ध सूत्र पढ़ने के बाद वे अपने चरागाह जाकर बेटे के लिए मवेशी चराते हैं। वर्तमान में उन के घर के पास 20 से ज्यादा गाय बैल हैं, हर वर्ष वांगत्वे बाज़ार में एक बैल बेचता है, जिससे पांच या छह हज़ार युआन की आय प्राप्त होती है।

वांगत्वे ने कहा कि अब वे बहुत स्वस्थ हैं। भोजन में चावल व सब्ज़ियां ज्यादा खाते हैं। खाने की चीजें अधिकांश अपने खेतों में उगती है। हर दिन खेतों से गोभी, मूली और आलू निकाल कर भोजन बनाया जाता है। वर्तमान में वांगत्वे की उम्र बड़ी हो गई। वे हवा में लम्बे समय तक खड़ा नहीं हो सकते। ज्यादा समय वे घर के आंगन में बैठकर तिब्बती शैली के लकड़ी वाला पाक साधन बनाते हैं। हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार के वक्त वांगत्वे ने उन्हें अपने काम की कृति दिखाईं:दूध रखने वाला लकड़ी का पीपा, खाने के लिए लकड़ी के चमचे, पानी रखने वाला लकड़ी के करछी इत्यादि। वांगत्वे ने गर्व के साथ कहा कि लेग्पो क्षेत्र में एकमात्र वह लकड़ी के पाक साधन बनाना जानता है। इस तरह व्यापार अच्छा है, जितना बनाया जाता है और उतना बेचा जाता है।


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