इस वर्ष तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की शांतिपूर्ण मुक्ति की 60वीं वर्षगांठ है। पिछले साठ वर्षों में तिब्बत के समाज व जन जीवन में भारी परिवर्तन आया है। आज के इस कार्यक्रम में आप हमारे साथ तिब्बत का दौरा करेंगे और सुनेंगे तीन पूर्व भूदासों की कहानी। वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार से पूर्व ये तीनों दस लाख भूदासों में से एक थे। पुरानी सामंती भूदास व्यवस्था के तहत उनका जीवन पशु के बराबर दुभर था, लेकिन आज पचास साल बीत चुके हैं, वे सभी सुख चैन की बंसी बजा रहे हैं। तत्कालीन कठोर जीवन सिर्फ़ यादों में रह गया।
हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार के समय लेग्पो गांव में रहने वाले 75 वर्षीय वयोवृद्ध वांगत्वे घर के सामने आंगन में एक पत्थर-पट्ट पर बैठे बौद्ध सूत्र जपा रहे हैं। वांगत्वे का घर तिब्बती शैली वाली दो मंजिली इमारत है। वे घर के आंगन में हमारा सत्कार करते हुए अपनी कहानी सुना रहे है।
लेग्पो गांव दक्षिण पश्चिम चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लोका प्रिफेक्चर की छ्वोना कांऊटी में स्थित है, समुद्रतल से उसकी ऊंचाई 2900 मीटर है, जो समुद्र सतह से औसतः 4000 मीटर ऊंचे छिंगहाई तिब्बत पठार पर कोई खास ऊंचाई नहीं मानी जाती है। लेकिन पहाड़ों में विशाल आदिम जंगल, उपजाऊ घास मैदान और खेती में जौ की लहलहाती फसलें लोगों की आंखों में एक सुन्दर दृश्य बना देती है। बातचीत में वांगत्वे ने कहा कि आज से पचास से ज्यादा साल पहले उन की जन्मभूमि के ऐसे प्रचुर संसाधनों का लाभ अपने से बहुत दूर था। वे सभी संपत्तियां सिर्फ़ लेग्पो में दो भूदास मालिक के हक में थीं। वांगत्वे ने कहा:
"उस समय हमारे यहां दो भूदास मालिक थे। पहाड़ की चोटी से घाटी तक की सारी भूमि उनके हाथ में थी। हम भूदासों द्वारा उत्पादित अनाजों पर हमारा कोई स्वामित्व नहीं था। भूमि और अनाज सब दोनों भूदास मालिकों के होते थे।"
वांगत्वे ने कहा कि पुराने जमाने में उसके रोज़ाना कार्यों में भूदास मालिक के लिए पशु चराना, खेती का काम करना, कपड़ा धोना आदि शामिल थे। कभी कभी मालिक के घोड़े पर चढ़ने के समय भूदास पायदान का काम भी आता था। कहते कहते वांगत्वे ने घुटने के बल बैठकर पायदान का रूप दिखाया, इस प्रकार का दृश्य सिर्फ़ ऐतिहासिक डाक्युमेंटरी वृत्तचित्र में देखा जा सकता है।
वांगत्वे ने कहा कि पुराने जमाने में आम लोगों का जीवन बहुत कठोर था। भूदास के वस्त्रों पर बहुत से पैच टंके थे, यहां तक कि कभी-कभी टंकाने के लिए कपड़े का कोई टुकड़ा भी नहीं मिलता था, लाचार होकर पशु के चमड़े ओढ़ना पड़ता था। भूदासों के पास कोई रजाई न होने के कारण सर्दियों के दिन बहुत लम्बे लगते थे। भूदास मालिक उन्हें बहुत कम आहार देते थे, एक दिन के कठोर काम के बाद मात्र थोड़ा बहुत चानबा मिलता था। ध्यान रहे, चानबा तो एक किस्म का तिब्बती पकवान है, जो तिब्बती जौ के आटे से बनाया जाता है, इस प्रकार का खाना तिब्बती लोगों के प्रमुख आहारों में से एक है। इस की चर्चा में वांगत्वे ने कहा:
"हमें एक दिन के लिए थोड़ा सा चानबा दिया जाता था, और हम तिब्बती मिर्च के साथ उसे खाते थे। जिससे पेट बिलकुल नहीं भर सकता।"