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तिब्बत में मुक्ति प्राप्त तीन भूदासों की कहानी
2011-12-08 13:16:52

तानजङ से मिलने के वक्त वे कुछ अन्य तिब्बती वृद्ध लोगों के साथ गपशप मार रहे थे। पेड़ की छाया में वे बातचीत कर रहे थे, बगल में छोटी बड़ी उम्र वाले दो बच्चे खेल रहे थे। खेल से थकने के बाद दोनों बच्चे दौड़कर तानजङ की गोद में जा बैठे। अपने दो पोतों को देखते ही तानजङ के चेहरे पर स्नेह की मुस्कुराहट खिली। अपनी बालावस्था की याद करते हुए तिब्बती भाई तानजङ ने कहा कि पुराने जमाने में पानच्वे लुन्बु गांव के अधिकांश गांव वासी फाला जागीर के भूदास थे। वे जागीर में पशु पालन, तिब्बती ऊनी वस्त्र फुलु और कार्पेट की बुनाई, शराब बनाने, कताई और सिलाई का काम करते थे। तानजङ के माता पिता फाला जागीर के भूदास थे, इसतरह उनके बेटे के रूप में तानजङ को भी जन्म से जागीर का भूदास होना था। आठ नौ वर्ष की उम्र से ही उसे जागीर के मालिक के लिए श्रम शुरू करना पड़ा था।

हमारे संवाददाता ने तानजङ के साथ फाला जागीर का दौरा किया और तानजङ ने उन्हें अपने उस पुराने निवास स्थल को दिखाया, जिसमें वे सात सालों तक रहे थे। भव्य फाला जागीर की तुलना में वह कमरा अत्यन्त छोटा संकरा था, जो फाला जागीर के मुख्य आंगन के सामने था। आंगन में कुल दस से ज्याजा कमरे थे, हरेक कमरा इतना छोटा था कि इसमें कोई फर्निचर नहीं लगाया जा सकता। सबसे बड़े कमरे का क्षेत्रफल भी 14 वर्ग मीटर मात्र था, और सबसे छोटा चार वर्ग मीटर से भी कम था। लेकिन इन कमरों में तानजङ और उन के माता पिता सहित 14 परिवारों के 60 से अधिक भूदास रहते थे। तिब्बती बुढ़े तानजङ ने कहा:

"उस समय हमारा रहने वाला कमरा अत्यन्त छोटा और नीचा था, कमरे में कोई जावनयापण का कोई साधन भी नहीं था।"

फाला जागीर में रहने के सात सालों में तानजङ का मुख्य कार्य पशु चराना था। रोज सुबह जब पौ भी नहीं फटा था, तो उसे एक हज़ार भेड़-बकरियों को निश्चित स्थल ले जाकर चराना पड़ता था। रात को अंधेरा छाने पर वह निवास स्थल वापस लौटता था। थक गया, तो चरागाह में थोड़ी देर झपकी मारता, लेकिन दिल में हमेशा यह डर बनी थी कि कहीं झपकी लेते समय कोई भेड़ भाग कर खो न जाए। इस की याद करते हुए तानजङ ने कहा:

"फाला जागीर में भेड़-बकरी चराते समय सबसे बड़ी चिंता भेड़ों की संख्या की कमी में थी। क्योंकि रोज़ जागीर में वापस लौटने के वक्त दूसरे नौकर एक-एक करके गिनता थे। अगर संख्या ठीक नहीं हुई, तो कड़ी सज़ा दी जाती थी।"

भूदासों को सज़ा देने के लिए फाला जागीर में हथकड़ी और चाबुक जैसे भिन्न प्रकार के साधन उपयोग किए जाते थे। अगर भूदास मालिक का मन उचटा, तो भूदास मारपीट से नहीं बच सकता था। अगर भूदास से कोई बड़ी गलती हुई, तो मालिक उन का नाक काटने व पैर तोड़ने तक की सज़ा देते थे।


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