आज से पचास साल पहले भूदास रह चुके तिब्बती वृद्ध वांगत्वे ने कहा कि पुराने जमाने में भुखमरी भूदासों के जीवन का सबसे बड़ा खतरा था, यहां तक कि कोई भूदास काम करते-करते भूखों के मारे मर जाते थे। इस प्रकार की याद करते हुए वांगत्वे ने कहा:
"मैंने खुद देखा था कि कई भूदासों ने भुखों के कारण मेरे सामने दम तोड़ा था। आंखें बंद होने के पूर्व उन्होंने कहा था कि अगर इस समय मेरे पास थोड़ा सा चानबा होता, तो मैं जीवित हो सकता।"
वांगत्वे ने कहा कि भूदास के रूप में मालिक के लिए काम करने के समय वह दूसरे सात भूदासों के साथ एक बहुत छोटे व अंधेरे कमरे में रहता था। उन्हें अभी याद है कि उस कमरे की सिर्फ़ एक छोटी सी खिड़की थी, रात को जब चांद की रोशनी बाहर से कमरे में छिटक जाती थी, तो अपने खाली कटोरे को देखकर भूदासों को ज्यादा भुख का महसूस होता था और नींद नहीं आ सकती थी।
जान बचाने के लिए भुखों से मारे भूदासों को रात को छिपे चुपके से हस्त शिल्प का कुछ काम करना पड़ा, ताकि पहाड़ से बाहर जाकर दुसरों के साथ इस के बदले में कुछ खाने की चीज़ मिलती थी। लेकिन वांगत्वे की तरह भूदासों को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं होने की वजह से उन के पास उत्पादन संसाधन नहीं थे। उन के द्वारा उत्पादित सभी उत्पाद मालिक के हाथों में चले जाते थे। इस तरह वे दूसरों के साथ अपनी बनाई चीजों का आदान प्रदान करने में बड़ी सावधानी बरते थे। अगर भूदास मालिक को मालूम हुआ, तो उन्हें निर्मर्म मारपीट खानी पड़ती थी, यहां तक कि जान भी गंवार जाती थी। वांगत्वे ने कहा:
"भूदास चुपके से खाने की चीजें बदलने के लिए जाते थे, अगर मालिक को पता चला, तो उसे बुरी तरह मारा पीटा जाता था। कुछ भूदासों को इतनी गंभीर चोट लगी था कि उन्होंने लौटने के बाद मेरे सामने दम तोड़ा था।"
वांगत्वे ने कहा कि उसके चाचा और छोटे भाई की मृत्यु इस प्रकार की मारपीट से हुई थी।