वांगत्वे ने कहा कि वर्तमान का जीवन बहुत अच्छा है। लेकिन खेद की बात है कि उन्हें स्कूल जाने का मौका नहीं मिला था। सांस्कृतिक ज्ञान कम होने के कारण उन्हें बाहरी दुनिया की कम जानकारी है। जीवन भर में तिब्बत से बाहर नहीं गया। इस तरह वांगत्वे ने अपने बेटे बेटी को कड़ाई से शिक्षा देने का प्रबंध किया है। उनसे कड़ी मेहनत से सीखने का अनुरोध करते हैं, ताकि बाहरी दुनिया के साथ ज्यादा संपर्क हो सके। वांगत्वे ने कहा:
"मैं हमेशा अपने बेटों व बेटियों से मेहनत से पढ़ने को कहता हूं। अगर वे अच्छी तरह नहीं सीखते, तो उन्हें आजीवन हमारे इस छोटे स्थान में रहना पड़ेगा। अगर वे बाहर जाकर बाहरी दुनिया देखेंगे, तो बाद में उनका दृष्टिकोण विस्तृत होगा और उन का भविष्य ज्यादा सुनहरा होगा।"
अब वांगत्वे के बेटे व बेटियां अपने कार्य पद पर पिता जी के सपने को साकार करने की कोशिश करते हैं। वे अलग अलग तौर पर समाचार मिडिया के संपादक, पन बिजली घर के अधिकारी और निकटस्थ जिले के नेता बन गए हैं। अपने बेटे-बेटियों की चर्चा करते समय इस भूतपूर्व भूदास को बहुत गर्व महसूस हुआ है।
अब वांगत्वे अपनी पत्नि के साथ रहते हैं। बेटे व बेटियां समय समय पर उन से मिलने घर वापस आते हैं। दो मंजिली तिब्बती शैली वाली इमारत में रंगीन टीवी सेट जैसे घरेलू बिजली उपकरण उपलब्ध हैं। वांगत्वे ने कहा कि हालांकि उन्हें पास कोई सांस्कृतिक ज्ञान कम है, लेकिन टेलिवेज़न प्रोग्राम देखने से वे बाहरी दुनिया के बारे में बहुत सी जानकारी हासिल कर सकते हैं। उन्हें आशा है कि मातृभूमि का भविष्य साल ब साल शानदार होगा, तिब्बत का भविष्य साल ब साल सुनहरा होगा, जन्मभूमि का भविष्य साल ब साल अच्छा होगा।
इन्टरव्यू समाप्त होने के बाद तिब्बती वृद्ध वांगत्वे हमें घर के बाहर तक विदाई केलिए छोड़ आये है। इस के बाद उन्होंने द्वार के सामने रखे काले रंग के पत्थर पर बैठकर सूत्र पढ़ना जारी रखा है। पत्नि उसे घी पिलाकर चुपके से पति के आसपास बैठी। इस समय आंगन में अमन-शांति छायी, सूर्य की रोशनी बादलों से छिटक कर आंगन में फैली हुई है, नन्ही बछड़ी घास खाने के बाद इतमीनान से सोयी।