इस तरह भेड़ बकरी चराते समय तानजङ बहुत सावधानी बरता था। जब नींद आई, तो वह तिब्बती जूते का तल्ला बनाने से नींद को दूर करता था। कभी कभी चुपके से जो जूते बनाये गए थे, उसे बाहर ले जाकर दूसरों को बेच भी सकता था, लेकिन यह काम दूसरों की नजरों से बचना चाहिए। तानजङ ने कहा कि वह भाग्यशाली था, किसी भी काम को करने के समय वे बहुत सावधान रहता था। इसतरह फाला जागीर में भूदास के रूप में सात सालों तक रहने के दौरान वह और उन के माता पिता बहुत कम मारपीट के शिकार बने।
लेकिन फाला जागीर से दूर स्थित तिब्बत की जानांग कांउटी में रहने वाले वांगत्वे नाम के एक भूदास तानजङ की तरह वैसा भाग्यशाली नहीं था। यह वांगत्वे है हमारी कहानी का तीसरा पात्र। आज हम आपको सुनाएंगे उनकी कहानी।
साठ से अधिक वर्षीय वांगत्वे से मुलाकात करने के वक्त वे तिब्बत की राजधानी ल्हासा के एक थिएटर में नाटक देख रहे थे। नाटक का नाम है《भूदासों की आंसू》,जो वांगत्वे और उन के गांव के दूसरे लोगों की आपबिती पर रूपांतरित किया गया है, जिस में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के पूर्व भूदासों के दुखांत जीवन का वर्णन किया जाता है। नाटक देखते-देखते पुराने जमाने में अपने दुभर जीवन की याद एकदम वांगत्वे को फिर ताजा हो गयी और उन की आंखों में आंसू भर आयी।
पुराने समय में बेहद गरीब होने के कारण आठ वर्ष की उम्र में वांगत्वे को अपने परिवार के द्वारा ल्हासा के अधीनस्थ कोंगका कांउटी के भूदास मालिक के घर में भूदास के रूप में भेजा। इस की याद करते हुए वांगत्वे ने कहा:
"परिवार ने मुझे वहां पहुंचाया, एक रात ठहरे। दूसरे दिन सुबह मैं घोड़े चराने के लिए बाहर भेजा गया, शाम को जब वापस लौटा, तो पता चला कि परिवार के लोग चले गए थे। उस समय मुझे बहुत दुख हुई और ऊंची आवाज में रोने लगा। दूसरे भूदासों ने मेरी हालत देखकर मुझे मनाते हुए कहा कि रोना मत, यहां हम अनेक भूदास हैं, हमारे साथ रह रहो। धीरे-धीरे मेरा रुदन बंद हुआ और इसके बाद पांच साल तक मैं वहां भूदास के रूप में ठहरता रहा।"
वांगत्वे ने कहा कि भूदास बनने के बाद वहां के असहनीय जीवन से बचने के लिए दूसरे भूदासों के साथ उसने दो बार भाग जाने की कोशिश की थी। लेकिन दोनों बार असफल रहे। हर बार पकड़े जाने के बाद उन्हें कठोर मारपीट की सजा दी गयी। इसी प्रकार का जीवन बिताते हुए पांच साल का समय चला गया। तीसरी बार भागने के वक्त वांगत्वे की बड़ी बहन चीनी जन मुक्ति सेना के जवानों को भूदास मालिक के घर ले आई। उन्होंने मालिक को पकड़ा और वांगत्वे को बचाया। बड़ी बहन ने वांगत्वे को बताया कि अब तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किया जा रहा है, जिससे भूदासों को व्यक्तिगत मुक्ति प्राप्त हुई है। बड़ी बहन चीनी जन मुक्ति सेना के लिए दुभाषिया बनी और इस बार वह विशेष तौर पर भाई को बचाने के लिए आई है।