वांगत्वे जैसे भूदासों के विचार में मारपीट खाना और भुखमरी दोनों समान खौफनाक बात थी। अपने द्वारा बनाई गई चीज़ों से दूसरे के साथ अदली बदला करने के कारण मारपीट खाती थी, काम के मालिक की मांग पर न पहुंचने के कारण भी मारपीट खाती थी, पशु चराते समय किसी एक पशु के खो जाने के कारण भी मारपीट खाती थी......वगैरह वगैरह। माकिल की नजर में भूदास महज उन के ऐसे पशु थे, जो बोल सकते थे। उनके पास भूदासों की मारपीट करने और उन्हें मार डालने का पूरा हक था। पुराने तिब्बत में वांगत्वे और उन के परिजन व दोस्त हमेशा इस प्रकार के खतरे में जीवन बिताते रहते थे।
"हम कठोर काम करते थे, लेकिन एक ही पैसा भी नहीं मिलता था। रोज़ काम करने के बाद अपने कमरे में वापस लौटने के वक्त वे एक दूसरे से पूछते थे कि क्या आज आपकी मारपीट की गयी। अगर मीरपीट नहीं खायी, तो बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती थी। वास्तव में मालिक के वहां काम करते समय मारपीट से मर जाना एक बहुत साधारण बात था। अतः हम हर रोज़ बहुत घबराते थे, भगवान ही जाने कि अगले क्षण में हमारी तकदीर पर क्या पड़ सकता है।"
वांगत्वे कभी नहीं भूल सकता है कि मालिक के हाथों घोर मारपीट खाने के कारण उन के पिता जी की आंखों में ज्योति हमेशा के लिए चली गयी। इसकी याद करते हुए तिब्बती बुढ़े वांगत्वे ने कहा:
"उस समय मेरे पिता जी एक बढ़ई थे। मालिक ने उन्हें एक काम करने के लिए दिया, लेकिन पिता जी ने उसे समय पर पूरा नहीं किया। मालिक ने उन की खूब मारपीट की, जिससे पिता जी की आंखें खराब हो गयीं और वे एक अंधा बन गए और हमेशा से रोशनी से वंचित हो गए। मालिक ने चाकू के पीठ से मुझे भी मारा, वह दर्दनाक एहसास आज तक भी नहीं मिट सकता।"
वांगत्वे ने कहा कि पुराने जमाने में भूदासों के लिए सबसे खतरनाक बात यह थी कि उन्हें कभी भी पता नहीं होता था कि अगले दिन क्या हुआ होगा। उन्हें पता नहीं होगा कि किसी काम के लिए जब सुबह बाहर गए, तो शाम को सही सलामत वापस आ सकता है अथवा नहीं।