पारंपरिक रेशम मार्ग का ह्रास और समुद्र पर रेशम मार्ग का उत्थान
पांच राजवंश काल से सुंग व य्वान राजकाल तक( ईस्वी 907—1368)
पंच राजवंश काल में चीन का राजनीतिक उपद्रव हुआ करता था और युद्ध बन्द नहीं होता था। रेशम मार्ग पर आने जाने वालों में ज्यादातर गैरसरकारी व्यापारिक दल थे और बहुत कम सरकारी मिशन दल थे। उत्तरी सुंग राजवंश में मध्य एशिया में इस्लामी धर्म का तेज़ विकास हुआ। पहले की भांति भारत की तीर्थ यात्रा करने वाले बौद्ध भिक्षुओं का चेहरा अब बहुत कम देखने को मिलता था। सुंग राजवंश और पश्चिमी देशों के बीच मुख्यतः समुद्री रेशम मार्ग के जरिए व्यापार व आदान प्रदान होता था। समुद्री व्यापार का प्रबंध करने के लिए सुंग राजवंश ने थांग राजवंश की विरासत लेकर क्वांग चाओ में समुद्री जहाजरानी विभाग की स्थापना की। दक्षिण सुंग राजकाल में समुद्री व्यापार से कराधान तत्कालीन शाही दरबार के राजस्व का प्रमुख भाग बन गया।
मंगोल साम्राज्य ने उत्तरी घास मैदान में शक्तिशाली बनने के बाद तीन बार पश्चिम विजय अभियान किए, और मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के विशाल क्षेत्रों पर कब्जा किया। वहां विकसित डाक चौकियों की स्थापना से रेशम मार्ग पर फिर एक बार चहल पहल होने लगा। यूरोप के अनेकों राजदूत, पादरी एवं व्यापारी रेशम मार्ग से चीन के य्वान राजवंश में आए।