चंद्रिमाः गाना के बाद हम फिर से पत्र पढ़ना जारी रखते हैं। अगला पत्र कृष्ण मुरारी सिंह किसान का है। उन्होंने लिखा है कि सी आर आई के कार्यक्रमों के साथ लेखन का कार्य भी चल रहा है। सी आर आई के कार्यक्रमों को सुनने के बाद लेखन कार्य में एक नयी सोच पैदा होती है। पत्र के साथ एक राष्ट्रीय पुरस्कार की प्रति भेज रहा हूं, जो हाल ही में ग्लोबल एग्री कलैक्ट के द्वारा विकसित उन्नत प्रौद्यौगिकी को अपनाकर कृषि की उच्च उत्पादकता प्राप्त करने एवं कृषि के व्यवसायीकरण में प्रोत्साहन के लिए दिया गया है।
विकासः मुरारी जी, पुरस्कार मिलने के लिए हमारी तरफ से बहुत-बहुत धन्यवाद। हमें आशा है कि आपके नेतृत्व में किसान नये तकनिकों को अपनाकर कृषि के क्षेत्र में और प्रगति कर सकेंगे। अगला पत्र कोडरमा रांची से अनुभा जी का है। वे लिखती हैं कि मैंने कोडरमा इकाई में चीन रेडियो श्रोता कल्ब की स्थापना की हूं जिसमें काफी सदस्यगण हैं, और वे बड़े उत्साह और उमंग के साथ आपके कार्यक्रमों को सुनते हैं। आगे लिखती हैं कि बहुत दुख के साथ सूचित कर रही हूं कि हमारे कल्ब के सदस्य आपकी श्रोता वाटिका नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं, लेकिन हमें श्रोता वाटिका नहीं मिल रहा है। अनुभा जी, हो सकता है किसी कारणवश आपके पास हमारा पत्र या श्रोता वाटिका नहीं पहुंच पा रहा होगा। हम कोशिश करते हैं कि भविष्य में आपको नियमित रूप से श्रोता वाटिका मिल सके।
चंद्रिमाः साथ ही अनुभा जी ने एक प्रश्न भी पूछा है। वे पूछती हैं कि पेइचिंग विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी। क्या इस विश्वविद्यालय में हिंदी संकाय की भी पढ़ाई होती है। अनुभा जी आपने यह बहुत अच्छा प्रश्न किया है। क्योंकि मैं पेइचिंग विश्वविद्यालय की छात्रा थी, इसलिए मेरे लिये इस प्रश्न का उत्तर देना बहुत आसान है। पेइचिंग विश्वविद्यालय चीन के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। पेइचिंग विश्वविद्यालय की स्थापना 1898 में हुई थी। पहले इसे इम्पीरियल युनिवर्सिटी ऑफ पेकिंग के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1912 में इसे वर्तमान नाम दिया गया। यहां पर हिंदी संकाय की भी पढ़ाई होती है। क्योंकि हिन्दी भारत की राष्ट्रीय भाषा है, और वह भारत की सरकारी भाषाओं में से एक भी है। अगर चीन भारत के साथ आदान-प्रदान व सहयोग करना चाहते हैं, तो ऐसे सुयोग्य व्यक्तियों को ज़रूर चाहिए, जिन्हें हिन्दी आती है। इसलिये वर्ष 1946 में हिन्दी संकाय की पढ़ाई शुरू हुई। अभी तक चार सौ से ज्यादा स्नातक इस पढ़ाई के बाद विभिन्न क्षेत्रों में चीन-भारत के मैत्रिपूर्ण संबंधों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।