छठा, चीन और भारत एक पट्टी एक मार्ग से जुड़े सहयोग करके एक साथ एशियाई शताब्दी की रचना कर सकते हैं।
चीन और भारत शांति, समृद्धि के उन्नमुख सामरिक सहयोग साझेदारी संबंधों और और घनिष्ट विकास साझेदारी संबंधों की रचना कर रहे हैं। चीन हमेशा ही शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों पर कायम रहता है और भारत के उचित ख्याल और हितों का सम्मान करता है। भारत विश्व की बहुध्रुवीकरण प्रक्रिया में एक अहम हिस्सा है। यह देखकर चीन को खुशी होती है कि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में और बड़ी रचनात्मक भूमिका निभाई है। एशिया बहुत विशाल है कि जहां पर ड्रैगन और हाथी साथ नाचने के लिये बड़ी जगह है। दोनों देशों के सहयोग से सच्चे मायने में ये शताब्दी एशिया की शताब्दी कही जा सकती है।
एक पट्टी एक मार्ग विकास पर केंद्रित है और विश्व के बहुध्रुवीकरण और लोकतांत्र में जुटा रहता है, बहुपक्षवाद और क्षेत्रवाद पर टडा रहता है, निरगुटता पर कायम रहता है। ये सब भारत की विदेश विचारधारा से मेल खाता है।
भूमंडलीकरण विरोधी विचारधारा और संरक्षणवाद और अलगाववाद के प्रचलित होने की परिस्थिति में एक पट्टी एक मार्ग खुले सहयोग और स्वतंत्र व्यापार की प्रमुख शक्ति है और साझा अर्थव्यवस्था का मिसाल भी।
अब भारत लुक ईस्ट, थिंकवेस्ट, ओशियन रिंग, डायमंड क्वाडरिलेटरल नेटवर्क, नॉर्थ-साउथ इकॉनमिक कॉरिडोर जैसी नीतियां लागू कर रहा है। इन रणनीति का केंद्र है आपसी संपर्क। यदि ये नीतियां एक पट्टी एक मार्ग से जुड़ती हैं, तो हमें आश्चर्यजनक नतीजे मिल सकेंगे।
भारत में प्रचुर पर्यटन संसाधन मौजूद हैं, जिनमें कई दर्शनीय स्थल, बौद्ध धर्म और प्राचीन थलीय और समुद्री रेशम मार्ग से जुड़े हैं। यदि चीन और भारत सहित देश रेशम मार्ग से संबंधी पर्यटन लाईन का निर्माण करते हैं, तो संबंधित पर्यटन बुनियादी संरचनाओं का निर्माण करते और प्रसार करते, तो भारत में यात्रा करने वाले चीनी पर्यटकों की संख्या सिर्फ दो लाख ही नहीं रहेगी, 20 लाख भी कम होगी। ध्यान रखें कि पिछले साल 12 करोड़ चीनी लोगों ने विदेशों की यात्रा की थी। हरेक चीनी पर्यटकों का औसत खर्च करीब 2300 अमेरिकी डॉलर है। तो हम गणना कर सकते हैं कि रेशम मार्ग संबंधी पर्यटन भारतीय जनता को कितना बड़ा लाभ दे सकेगा।