भारत स्थित चीनी दूतावास के मिनिस्टर ल्यूचिनसुंग ने भारतीय ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निमंत्रण पर मुम्बई में आयोजित एक पट्टी एक मार्ग संबंधी एक संगोष्ठी में भाषण दिया। मौके पर ल्यूचिनसुंग ने कहा कि 14 से 15 मई को चीन की राजधानी पेइचिंग में एक पट्टी एक मार्ग अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मंच का आयोजन किया जाएगा। तब वहां पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग मंच की अध्यक्षता करेंगे। 28 देशों के नेता और संयुक्त राष्ट्र महासचिव मंच पर भी उपस्थित होंगे। 110 देशों के विभिन्न तबकों के सूत्रों और 61 अंतर्राष्ट्रीय संगठन मंच पर भाग लेंगे। वर्तमान मंच की थीम है सहयोग और समान उदार। हाल के दिनों में भारतीय मीडिया, विद्वानों और थिंकटैंक ने एक पट्टी एक मार्ग पर ध्यान दिया और विविधतापूर्ण राय भी पेश की। उनकी चर्चा का केंद्र विषय ये था कि क्या भारत को एक पट्टी एक मार्ग में भाग लेना चाहिए? भारत को एक पट्टी एक मार्ग से लाभ मिलेगा या नहीं?
भारतीय लोगों के इन संदेहों की चर्चा में ल्यू चिनसुंग ने अपने विचार प्रकट किये। उन्होंने छह क्षेत्रों पर प्रकाश डाला।
पहला, ऐतिहासिक संस्कृति के दृष्ठकोण से देखा जाए तो भारत हमेशा ही रेशम मार्ग पर स्थित रहा है। प्राचीन समय के महा भिक्षु ह्वेनत्सांग चीन के छांग आन से प्रस्थान करके चीन के शिनच्यांग, मध्य एशिया, अफगानिस्तान, कश्मीर को पार कर नालंदा विश्वविद्यालय पहुंचे। उन्होंने भारत में करीब 17 सालों तक पढ़ाई की और पूरे भारत की यात्रा की। चीन वापस लौटने के बाद उन्होंने《थांग राजवंश में पश्चिम की तीर्थयात्रा》नाम की पुस्तक लिखी, जिसमें तत्कालीन भारत के उपमहाद्वीप के बीसीयों राज्यों के रीति-रिवाज़ों और धार्मिक वातावरण का विवरण था।
उधर, दक्षिण भारत के महाभिक्षु बोधिधर्म समुद्री रेशम मार्ग के रास्ते चीन आए और उन्होंने चीन के जेन धर्म की स्थापना की। उन्होंने बौद्ध धर्म के चीन में प्रसार करने में अहम भूमिका निभाई। जिस चीनी बौद्ध मठ श्याओलिन में वो ठहरे थे वहां की चीनी कुंग फ़ू से भारतीय भली भांति परिचित हैं।
600 वर्ष पहले चीन के मिंग राजवंश के दूत जडं ह ने 7 बार अटलांटिक सागर की यात्रा की और 6 बार भारत के केरल प्रदेश के कालीकट पहुंचे। इससे नज़दीक कोचीन में अभी भी जडं ह के बेड़ा द्वारा स्थानीय लोगों को दिए गए मछली पकड़ने का जाल मौजूद है। ये जाल स्थानीय प्रतीक मार्क बन चुके हैं।
भारत से आए भैंस, कपास, पालक, बौद्ध धर्म, चंद्र कला, भारतीय खगोल विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान समेत अनेक सामान प्रचीन रेशम मार्ग के जरिए विभिन्न देशों में निर्यात किये गये। साथ ही चीन के रेशम, चीनी बर्तन, चाय, मुद्रण, बारूद, कागज भी भारत पहुंचे, जिसने भारतीय जनता के जीवन को रंग बिरंगा बनाया और भारत के आर्थिक और सामाजिक इतिहास को बदला।
प्रचीन काल में चीन, भारत और अरब देशों के जहाज हिन्द महासागर और दक्षिण सागर और पूर्वी सागर के बीच चलते थे। यह आज के आर्थिक भूमंडलीकरण की शुरूआत है।
हाल ही में चीन द्वारा प्रस्तुत एक पट्टी एक मार्ग का आह्वान प्राचीन रेशम मार्ग का प्रसार और उन्नति है, जो प्राचीन रेशम मार्ग और एशिया के पुनरुत्थान का प्रतिनिधित्व करता है। चीन और भारत प्राचीन रेशम मार्ग में अहम योगदान देने वाले देश हैं। दोनों ने एक साथ शांति और सहयोग, आपसी लाभ और समान उदार की रेशम भावना की रचना की।