"जब मैं अपने पापा-मम्मी के साथ घुमने जाती थी, तो एक बढिया से होटल में ठहरते थे, अच्छी गाड़ियों में ट्रेवल करते थे, और सब चीज़ शानदार तरीके से व्यवस्थित होता था। पर भीतरी मंगोलिया की यात्रा ने मेरे अनुभवों को समृद्ध बना लिया है। वापिस लौटने के बाद, फिर से इस तरह की परेशानियों का सामना करते हुए कोई मुश्किल महसूस नहीं हुई। मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ गया है।"
भारत के पारंपरिक मूल्यों में नारियों का स्थान अपेक्षाकृत कम है। लेकिन जैसे-जैसे सामाजिक विकास होता जा रहा है, प्रत्युषा जैसी स्वतंत्र भावना से ओत-प्रोत लड़कियां ज्यादा हो रही है। भविष्य में पढाई और जीवन के बारें में प्रत्युषा ज्यादा आत्मविश्वासी नज़र आती है।