"2009 में मैं अपने पापा-मम्मी के साथ चीन आयी थी। कई जगह घूमने के बाद मुझे यहां पसन्द आया था। मैंने जल्द ही चीन आकर पढने का मन बना लिया था। भारत में, इस तरह का विश्वविधालय कभी नहीं देखा था। भारत की तुलना में चीन काफी अच्छा है, इसलिए भारत में पढ़ाई जारी रखने का मन नहीं था।"
आख़िरकार वर्ष 2011 में, 18 वर्षिया प्रत्युषा का विदेश में पढ़ने का सपना साकार हो गया, और अकेले ही चीन आ गई। चीन में पढने के शुरूआती दिनों में, हालांकि रहने, और खाने-पीने में दिक्कतें तो आई थी, पर उन्होंने उन सभी दिक्कतों को दूर कर लिया था। वह बताती है कि जैसा कि उन्होंने ही विदेश में पढने का फैसला लिया था, तो फिर परेशानी का कोई सवाल ही नहीं उठता। अब, जब भी उन्हें घर की याद आती है, तो वह अपने अपार्टमैन्ट की रसोई में भारतीय पारंपरिक खाना पकाती है। कहा जा सकता है कि अब प्रत्युषा चीन में अपने जीवन का पूरा आनन्द उठा रही है। उन्होंने संवाददाता को बताया कि वह अपने आप से बहुत खुश है, और चीन में बेहद प्रसन्न है।
अगर चीनी भाषा पढ़ने की वजह की बात करें तो प्रत्युषा और अन्य छात्रों में बहुत फ़र्क है।
"मुझे भाषाएं सीखने में बडी रूचि है। जब मैं भारत में थी, तो मैंने स्पैनिश और फ्रैंच भाषाएं पढीं। बाहरवीं पास करने के बाद, सोचा कि किसी विदेशी भाषा को मुख्य विषय बनाकर अपनी पढाई जारी रखूँ। मैनें सोचा कि स्पैनिश और फ्रैंच भाषाएं अपेक्षाकृत आसान है, तो कोई एक मुश्किल भाषा पढ़ूं, इसलिए मैनें चीनी भाषा को मुख्य विषय के रूप में चुना।"