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श्री विश्वकर्मा पूजा
2012-09-19 10:45:00

चंद्रिमाः डाक से भेजे गये इतने पत्र पढ़ने के बाद, अब हम ई-मेल से कुछ पत्र चुनकर पढ़ेंगे। सब से पहले हम एक नये श्रोता का पत्र पढ़ते हैं। पश्चिम मिदनापुर, पश्चिम पंगाल के साग्निक चौधरी ने हमें भेजे ई-मेल में यह लिखा है कि मैं भारत में रहता हूं। मैं सी.आर.आई. हिन्दी सेवा का एक नया श्रोता हूं। और मुझे आप के कार्यक्रम सूची चाहिए, ताकि मैं इसे अपने दोस्तों के साथ बांटकर आप के कार्यक्रम सुन सकता हूं। साथ ही उन्होंने अपने पता भी साफ़ साफ़ लिखा है।

पंकजः साग्निक साहब, आप को हमारे श्रोता बनने का हार्दिक स्वागत है। आपका ई-मेल प्राकर हमने तुरंत ही ई-मेल द्वारा आप को हमारे कार्यक्रम की सूची भेजी है। और अगर आप के दोस्तों को भी हमारे कार्यक्रम सुनने का शौक है। तो उन्हें हमारी वेब साइट पर भी कार्यक्रम की सूची और सीआरआई हिन्दी सेवा की समय सारणी मिल सकेगी। हमने आप का पता हमारे मेल लिस्ट में भी शामिल किया है। भविष्य में आप को नियमित रूप से हमसे भेजी गई सामग्रियां मिल जाएंगी।

चंद्रिमाः केसिंगा, ओड़िशा के हमारे सक्रिय श्रोता सुरेश अग्रवाल के ताज़ा ई-मेल में यह लिखा गया है कि आज समाचारों में त्याओ यू द्वीप विवाद पर चीन द्वारा पुनः अपना रुख स्पष्ट करते हुए जापान से साफ़ कह दिया गया कि अब द्विपक्षीय सम्बन्धों का दारोमदार पूरी तरह जापान के रुख पर निर्भर है, चीन सीरिया मुद्दे के राजनीतिक हल का हामी, तथा अमरीका में इस्लाम पर बनी आपत्तिजनक फ़िल्म का पाकिस्तान में भी जम कर विरोध आदि समाचारों ने काफी ध्यान खींचा। साप्ताहिक कार्यक्रम "चीन का भ्रमण" के अन्तर्गत पेइचिंग विश्वविद्यालय की पुरानी इमारत होम्लोंग (लाल भवन) तथा थ्येन आन मन पर दी गई ऐतिहासिक जानकारी अत्यन्त ज्ञानवर्ध्दक लगी। सत्तासी वर्ष पुरानी इमारत का डिजाइन एक पुर्तगाली इंजीनियर द्वारा किया गया था और दिवंगत माओत्से तुंग का सम्बन्ध भी होम्लोंग से रहा, यह जानकारी अपने आपमें काफी अहम् है। थ्येन आन मन चौक तो अक्सर समाचारों में रहता है, आज पता चला कि यह विश्व का सबसे सुन्दर और विशाल चौक है। उक्त दोनों महत्वपूर्ण स्थानों की ऐतिहासिक तथा वहां के आज के परिदृश्य पर दी गई विस्तृत जानकारी इतनी जीवंत लगी कि मानों हम स्वयं वहां पहुँच गये हों।

पंकजः कार्यक्रम "चीन का तिब्बत" की चर्चा में उन्होंने यह लिखा है कि इस कार्यक्रम के तहत बीजिंग में आयोजित पांचवीं तिब्बत शस्त्र अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने आये गढ़वाल स्थित हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और पुरातत्वविद विनोद नौटियाल से श्योथांग जी द्वारा ली गई भेंटवार्ता काफी उत्साहवर्ध्दक लगी, क्योंकि उन्होंने हिमाचल प्रदेश के किन्नौर एवं लेपा में खुदाई के दौरान पाए गये महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवशेषों के आधार पर भारत-चीन रिश्तों को एक नया आयाम देने की कोशिश की। इसमें दोराय नहीं कि पुरातात्विक अनुसन्धान के आधार पर प्राचीन रिश्तों को नई रोशनी में और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है। मैं चाहूँगा कि भारत-चीन की सरकारें न केवल भारत-तिब्बत सीमान्त बल्कि सम्पूर्ण ट्रांस-हिमालयन क्षेत्र में आवश्यक उत्खनन की अनुमति प्रदान कर अपनी प्राचीन विरासत को सामने लाने में मदद करें।

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