आजकल रेलगाड़ी चलाने की स्थिति में दिन प्रति दिन सुधार हो रहा है। थूतङ डोर्चे ने कहा कि खराब मौसम, ऑक्सीजन की कमी, ताज़ा सब्ज़ियां और खाना जैसे सवाल उसके लिए कठिनाई नहीं है। सबसे मुश्किल बात सुस्ती और अकेलापन ही है। रेलगाड़ी चलाने के लिए उसे चालक रूम में रहना पड़ता है। यह रूम बहुत छोटा है और बाहर से संपर्क बिलकुल टूट जाता है। रेलगाड़ी चालने के दौरान उसे गाड़ी का शोर सहना पड़ता है। दिन भर में बाहर का दृश्य हमेशा एक जैसा रहता है, यहां तक कि कुछ स्थलों में एक ही तरह पेड़ को भी नहीं देख पाता, विशाल घास के मैदान को देखते-देखते आंखों को थकान लगने लगती है। रात को इस प्रकार का दृश्य देखने को भी नहीं मिलता, आगे दो रेल मार्गों के अलावा कुछ नहीं देख पाते। इस तरह रात्रि का समय ज्यादा मुश्किल होता है।
अब आप सुन रहे हैं थूतङ डोर्चे द्वारा गाया गया तिब्बती गीत। उसने कहा कि अगर सुस्ती और अकेलापन लगता हो, तो वह गुरु के साथ चालक रूम में कभी गाते हैं, कभी नाचते हैं। कभी परिजनों को फोन करके बाचचीत करते हैं और कभी सिगरेट पीते हैं। इस प्रकार की कार्रवाइयों से वे अपना मन रेलगाड़ी में लगाए रखते हैं। थूतङ डोर्चे ने कहा:
"रात्रि ड्यूटी पर कभी कभार हमें थकान लगती है। इस तरह हम कभी गाड़ी को बंद कर थोड़ा आराम करते हैं। इसी दौरान हम चालक रूम में गाते हैं और नाचते हैं।"
थूतङ डोर्चे ने कहा कि भीतरी क्षेत्र के चङचो शहर में पढ़ाई करने के वक्त उसे सड़क पर नाचना पसंद आता था। एक बार राष्ट्र स्तरीय सड़क नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेकर उसने दूसरा स्थान प्राप्त किया था। इसी शौक के कारण चालक रूम में लम्बी रात बिताने के लिए उसे और गुरु को ज्यादा सुस्ती नहीं लगती। हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार के दौरान रेलगाड़ी न चलाने के थोड़े कम समय में थूतङ डोर्चे ने खुशी के साथ संवाददाता को नृत्य दिखाया और दक्षिण कोरियाई गीत भी गाया।