मित्रों, अब आप सुन रहे हैं गीत《स्वर्ग मार्ग》। यह चीन में एक बहुत लोकप्रिय तिब्बती गीत है, जो तिब्बती जनता द्वारा छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग के लिए विशेष तौर पर रचा गया गीत है। गीत के बोल हैं:
वही है एक आश्चर्यजनक रास्ता
मातृभूमि की चिंता को तिब्बत के विभिन्न स्थलों तक पहुंचाता है
बाद में हमें
पहाड़ कभी ऊंचा
और रास्ता लम्बा नहीं लगता
विभिन्न जातियों के लोग खुशहाल एक साथ रहेंगे
स्वर्ग मार्ग के रूप में छिंगहाई तिब्बत रेल मार्ग का यातायात शुरू होने के बाद तिब्बत में रेल मार्ग नहीं होने का इतिहास समाप्त हो गया। इस मार्ग से स्थानीय लोगों के भौतिक जीवन में भारी परिवर्तन आया है। थूतङ डोर्चे ने कहा कि अब ल्हासा में लोगों को खाने, पीने, इस्तेमाल करने की सभी वस्तुएं मिल सकती हैं। वह छिंगहाई तिब्बत रेलगाड़ी चालक है, इसके प्रति परिजनों, मित्रों और संबंधियों में बहुत गर्व है। क्योंकि इस रेलमार्ग से जन्मस्थान के व्यक्तियों को सही मायने में लाभ मिलता है। थूतङ डोर्चे ने हंसते हुए कहा:
"मुझे गर्व है। इसके साथ ही परिजनों को भी मेरे रोज़गार के प्रति गर्व है। मेरा जन्मस्थान ल्हासा का एक छोटा कस्बा है, जहां लोग एक दूसरे के परिचित हैं। मेरी मां रोज़ दूसरे लोगों से कहती है कि मेरा बेटा रेलगाड़ी चला रहा है।"
सूत्रों के अनुसार वर्तमान में छिंगहाई तिब्बत रेललाइन में कार्यरत 800 से अधिक रेलगाड़ी चालक हैं। वे रेलगाड़ी से तिब्बती बंधुओं के लिए पर्याप्त महत्वपूर्ण वस्तुएं पहुंचाते हैं। इस रेललाइन से तिब्बत की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ रही है। इस तरह चालकों को अपने रोज़गार के प्रति ज्यादा गर्व होता है। लेकिन कम लोग जानते हैं कि उनका कार्य कितना कठोर और कठिन होता है। छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन समुद्र सतह से सबसे ऊंचे, सबसे खराब प्राकृतिक स्थिति और सबसे गंभीर जलवायु वाले मानव रहित क्षेत्र से गुज़रती है। स्थिति इतनी कठोर है कि बहुत ज्यादा रेलगाड़ी चालकों को समुद्र सतह से ऊंचे स्थलों से गुज़रने के वक्त ऑक्सीजन बॉक्स से ऑक्सीजन लेते हुए गाड़ी चलाना पड़ता है। थूतङ डोर्चे के गुरु लाकाओ छाईरांग के पास इस प्रकार का ज्यादा अनुभव है। 37 वर्षीय लाकाओ छाईरांग का जन्म रेल मज़दूर परिवार में हुआ था। वर्ष 2002 से ही उन्होंने रेलगाड़ी चालक का कार्य शुरू किया। अब तक उनके प्रशिक्षण से दो शिष्यों को उप चालक से प्रमाणित रेलगाड़ी चालक बन गए। गंभीर वातावरण में रेलगाड़ी चलाने का अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा:
"पहले मैं हार्गेई से मूली तक की लाइन पर रेलगाड़ी चालता था, जो समुद्र सतह से 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस तरह रेलगाड़ी में ऑक्सिजन बॉक्स लगाना जरूरी है।"