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"पंचरंग धनुष"से तिब्बती संस्कृति दर्शायी जाती है
2013-05-14 13:59:50

समारोह में भाग लेने वाले तूर्की प्रतिनिधि मंडल

धनुष खेल समारोह में भाग ले रहे हौलैंड की खिलाड़ी

यांग चोंगखा के कथन में तथाकथिक हत्यारा तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रसार करने आए भारतीय महागुरु पद्मसम्भव का 23वां शिष्य लालोंग बेइगी डोर्चे था। ईस्वी सन् 843 में लालोंग बेइगी डोर्चे बौद्ध धर्म की रक्षा करने और तिब्बत में इसकी समाप्ति न किये जाने के लिए थूपो के राजा लांग दामा की हत्या कर दी गई। इसके बाद वह थूपो सरकार द्वारा गिरफ्तारी और हत्या से बचने के लिए इधर-उधर भागता रहा और अंत में च्यानचा कांउटी के लोतो चेचा पहुंचा। तिब्बती भाषा में लोतो चेचा का मतलब वज्र गुफ़ा है। लालोंग बेइगी डोर्चे ने यहां पर छिपकर संन्यास लिया। गुफ़ा के सामने उसने राजा लांग दामा की हत्या करने वाले धनुष और तीर को भूमि में गाड़ दिया। बाद में स्थानीय लोगों ने धनुष और तीर को दफ़न करने वाले स्थल पर पत्थरों से"पनखांग"स्थापित किया। तिब्बती भाषा में"पनखांग"का अर्थ"धनुष दफ़न करने वाला भवन"है। तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास के पुनरुत्थान के चलते च्यानचा कांउटी में धीरे-धीरे धनुष और तीर से जुड़ी"पंचरंग धनुष"संस्कृति स्थापित हुई।

"पंचरंग धनुष"संस्कृति की चर्चा में च्यानचा कांउटी के संस्कृति, खेल, रेडियो, फिल्म, टीवी और पर्यटन ब्यूरो के प्रधान यांग चोंगखा ने जानकारी देते हुए कहा कि च्यानचा कांउटी नदी घाटी क्षेत्र में स्थित है, जिसके चारों तरफ़ पहाड़ हैं। थूपो वंश में महत्वपूर्ण रणनीतिक अड्डे पर यहां बहुत ज्यादा सैनिक तैनात थे। थूपो वंश की समाप्ति के बाद यहां पर तैनात सैनिक धीरे-धीरे स्थानीय नागरिक बन गए। लेकिन अपने जीवन वो स्वयं को तीर धनुष से अलग नहीं कर पाए और तीर धनुष उनकी आदत बन गई। इस तरह इसी स्थल में धनुष चलाना लोकप्रिय हो गया। बाद में वह तिब्बती संस्कृति और लोगों के जीवन उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवेश हुआ। धीरे-धीरे एक प्रकार का खेल बन गया। इसकी जानकारी देते हुए यांग चोंगखा ने कहा:

"कृषि उत्पादन के अवकाश के समय विशेष कर हर वर्ष सितम्बर के माह में कई गांवों के बीच धनुष चलाने की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। इस दौरान धनुष से संबंधित नियम और नियमावलियों ने भी जन्म लिया। उस जमाने में धनुष चलाने की गतिविधियों में भाग लेने वाले विभिन्न गांवों के गांववासी यहां इकट्ठा हुआ करते थे। हर गांव के बीच का फासला अच्छा खासा हुआ करता था इसलिए एक गांव के खिलाड़ी दूसरे गांव आने के बाद कई दिनों तक वहां ठहरना पड़ता था। इसी दौरान दोनों पक्ष धनुष से संबंधित विचारों का आदान प्रदान करते थे और धीरे-धीरे धनुष से जुड़ी संस्कृति पैदा हुई।"

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