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"पंचरंग धनुष"से तिब्बती संस्कृति दर्शायी जाती है
2013-05-14 13:59:50

तिब्बती युवा बड़ा पंचरंग धुनष लेते हुए 

आधुनिक समाज में प्राचीन समय में युद्ध में हथियार के रूप में प्रयोग किए जाने वाले धनुष और तीर धीरे-धीरे ऐतिहासिक मंच से विदाई ले रहे हैं। आज के समय में तीर धुनष चलाना एक प्रकार का खेल माना जाता है। छिंगहाई तिब्बत पठार में ऐसा एक स्थल है, जहां धुनष चलाना एक रूचिकर जातीय खेल के रूप में सुरक्षित है, बल्कि इसमें मौजूद पुरानी संस्कृति को विरासत में लेते हुए प्रसार और विकास भी किया जाता है। यही नहीं, इस प्रकार का धनुष का खेल इस स्थल से धीरे-धीरे विश्व के दूसरे देशों में फैल रहा है और ज्यादा से ज्यादा धनुष प्रेमियों का पसंदीदा खेल बन गया है। यही स्थल है छिंगहाई प्रांत की च्यानचा कांउटी।"पंचरंग धनुष"से जुड़ी संस्कृति के कराण ये छोटी पठारीय कांउटी विश्वभर में सुप्रसिद्ध हो रही है। धनुष के माध्यम से इस कांउटी के लोग देश के दूसरे प्रांतों और शहरों के व्यक्तियों और विश्व के विभिन्न देशों के लोगों के साथ मित्रता कर रहे हैं। वे धनुष के माध्यम से अपनी विशेष तिब्बती संस्कृति का प्रसार भी कर रहे हैं।

च्यानचा कांउटी छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर के उत्तरी भाग में स्थित है। ये तिब्बती बहुल जातीय क्षेत्र है। च्यानचा कांउटी तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास के पुनरुत्थान के दौर का उद्गम स्थल है, जहां देछिन मठ, चीहो मठ और कूरेई मठ जैसे तिब्बती बौद्ध धर्मिक मठ चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में सुप्रसिद्ध हैं। इसी कांउटी के भीतर कानपुरा नाम का राष्ट्रीय वन उद्यान है, जिसमें विशेष तानश्या लैंडफ़ॉर्म प्राकृतिक दृश्य देखा जा सकता है। (ध्यान रहे, तानश्या लैंडफॉर्म .... चीनी भाषा में तान का मतलब लाल रंग होता है और श्या का मतलब है सूर्यास्त के समय आकाश में फैला लाल रंग है। तानश्या का पूरा शाब्दिक अर्थ सूर्यास्त के समय लाल रंग का क्षितिज है। तानश्या लैंडफॉर्म उस विशेष भौगोलिक स्थिति को कहते हैं, जहां पर चट्टानें हज़ारों वर्षों में वर्षा और हवा के कारण लाल रंग की हो जाती हैं।) कानपुरा राष्ट्रीय वन उद्यान में आछोंग नानचोंग मठ, नानचोंग भिक्षुणी मठ और नानचोंग चासी मठ जैसे प्राचीन मठ भी सुरक्षित हैं, जिनका इतिहास आज से 1200 से भी अधिक वर्ष पुराना है। राष्ट्रीय वन उद्योग में स्थित नानचोंग खाई वर्तमान विश्व में ऐसा एकमात्र स्थल है, जहां तिब्बती बौद्ध धर्म के लाल संप्रदाय और पीले संप्रदाय, प्रकारण शासन संप्रदाय और तंत्र संप्रदाय, भिक्षु और भिक्षुणी साथ-साथ रहते हैं। यह तिब्बती बौद्ध धर्म में बहुत पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश, छिंगहाई, कानसू, स्छवान और युन्नान जैसे प्रांतों के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में अत्यंत विख्यात है।

यांग चोंगखा इन्टरव्यू लेते हुए

कहते हैं कि इस्वी सन् 9वीं शताब्दी के मध्य में तत्कालीन तिब्बत यानी थूपो राजवंश के राजा लांग दामा ने बुद्ध-समाप्ति आंदोलन चलाया, जिससे बौद्ध धर्म को नष्ट के बराबर भारी नुक्सान पहुंचा। तिब्बती बौद्ध धर्म के तीन आचार्य बौद्ध सूत्रों को लेकर तिब्बत से लम्बी दूरी की यात्रा के बाद आज के छिंगहाई प्रांत की च्यानचा कांउटी तक आ पहुंचे। वे कानपुरा क्षेत्र के नानचोंग पर्वतों में छिपकर बौद्ध धर्म का प्रसार करने लगे। उनके प्रयासों से बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान हुआ। इतिहास में इसे तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास का पुनरुत्थान दौर कहा जाता है। इसकी चर्चा में च्यानचा कांउटी के संस्कृति, खेल, रेडियो, फिल्म, टीवी और पर्यटन ब्यूरो के प्रधान, तिब्बती अधिकारी चांग चोंगखा ने जानकारी देते हुए कहा:

"इस्वी 9वीं शताब्दी के मध्य में थूपो वंश में बड़े पैमाने पर बुद्ध-समाप्ति आंदोलन चलाया गया था। उस समय बौद्ध धर्म समाप्त किए जाने के बाद स्थानीय बोन धर्म का विकास किया जाने लगा। इस तरह तिब्बती बौद्ध धर्म के बहुत ज्यादा आयार्य और भिक्षु तिब्बत से हमारे यहां आ गए। इनमें तीन आचार्य तिब्बत के इतिहास में बहुत मशहूर हुए हैं और उन्हें'तीन महाचार्य'कहा जाता है। वे हमारे यहां कानपुरा क्षेत्र के पहाड़ की एक गुफ़ा में छिपकर संन्यास ले रहे थे और साथ ही बौद्ध धर्म का प्रसार भी करते थे। बुद्धधर्म-समाप्ति आंदोलन के कारण थूपो वंश के अंतिम राजा की हत्या कर दी गई और इस वंश का खत्मा भी हुआ।"

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