मास्टर न्यांगपन को शिष्यों को प्रशिक्षित किये हुए अनेक साल हो गये हैं। उन्होंने इस की चर्चा में कहा कि एक साधारण लघु थांगका का चित्रण करने में कम से कम तीन माह से ज्यादा समय लगता है, यह एक अत्यंत धीमी, बारीक और सूक्ष्म क्रिया होती है, जल्दबाजी से अच्छा काम नहीं वन पाता है। इस के अलावा थांगका का चित्रण करने में बौद्ध धार्मिक विश्वास का पालन करना अत्यावश्यक है, काम शुरु होने से पहले सूत्र पढ़कर सुनाना और हाथ मुंह धोना जरूरी भी है , फिर बैठकर तन मन से चित्रित काम शुरु किया जा सकता है। इसकी चर्चा में न्यांगपन ने कहा:
"बुद्ध का चित्रण करने में तभी सफल होगा, जबकि चित्रण के लिये दिल को शांत बनाया जाये, सूत्र पढ़कर बुद्ध की पूजा की जाये और दिलोजान से बुद्ध का चित्रण किय जाये। जब बड़ा आदर भाव लिये बुद्ध का चित्रण किय जाता है, तो चित्रित बुद्ध जीगते जागते जान पड़ते हैं।"
मास्टर न्यांगपन ने अपनी बारह वर्ष की उम्र में उस्ताद से थांगका के चित्रण से सीखना शुरु किया, तब से लेकर अब तक उन्हें यह काम किये हुए 28 साल हो गये हैं।
थांगका सीखने की शुरुआत में मास्टर न्यांगपन एक बच्चा थे, कुछ नहीं जानते, ठीक से रंग न बनाने या असावधानी से रंग फेंक देने से उन्हें जरुर पिटाई खानी पड़ी, थांगका के चित्रण से जुड़ने वाले सभी काम करने में बडी सावधानी रहने की सख्त जरूरत पड़ती है, बखूबी काम अंजाम देने के लिये परिश्रम और कठिन अभ्यास करना अत्यावश्यक है। तिब्बती शिल्पकार न्यांगपन ने कहा:
"उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि शुरु में रेखा खींचना भी नहीं आता, बहुत ज्यादा रेखाएं सीधी खींचने में असमर्थ था, अनेक साल का कठिन अभ्यास करने के बाद धीरे-धीरे परिपक्व हो गया, अब मन में जो चीज आती है, उस का चित्रण आसानी से करने में सक्षम हो गया हूं।"
अनेक वर्षों के कठोर प्रयासों के जरिये उस्ताद न्यांगपन रअकुंग थांगका कला का प्रमुख प्रतिनिधित्व करने वाले विभूतियों में से एक हैं और राष्ट्र स्तरीय उत्तराधिकारी भी हैं, पर अब उन के सामने मौजूद सब से बड़ी मुश्किल कौशल और चित्रण के बजाये परामर्श और सलाह मांगने जैसे बाहरी खलल ही हैं। हालांकि वे लोगों के समर्थन व ख्याल के प्रति कृतज्ञ हैं, लेकिन व्यस्त दैनिक कार्यक्रम से उन के सृजन पर कुप्रभाव पड़ गया है। आखिर थांगका का चित्रण करने में शांतिमय वातावरण की जरूरत तो है।
अब न्यांगपन रअकुंग थांगका के संरक्षण, विस्तार और विकास में ज्यादा समय लगा देते हैं, जब प्रदर्शनी होती है, तो वे जरुर ही प्रचार प्रसार के लिये प्रदर्शनी देखने जाते हैं, उन का उद्देश्य व्यक्तिगत सफलता ही नहीं, रअकुंग क्षेत्रीय थांगका कला का विकास करना भी है। तिब्बती शिल्पकार न्यांगपन का कहना है:
"थांगका एक कला है, वह हमारे पूर्वजों द्वारा छोड़ा गया है, एक शिल्पकार होने के नाते इस कला का विरासत में ग्रहण, संरक्षण और प्रदर्शन करने का मेरा दायित्व है।"