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रअकुंग थांगका का असली कला के रुप में विरासत में ग्रहण करने में संलग्न न्यांग पन
2012-07-08 19:27:28

एक कला का ग्रहण करने के लिये यह जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा श्रेष्ठ उत्तराधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाये। इसी काम को न्यांगपन ने बखूबी अंजाम दिया ही नहीं, असाधारण सुफल भी कर दिये हैं।

रअकुंग चित्र कला अकादमी वर्तमान रअकुंग थांगका का सर्वोच्च प्रतिष्ठान ही है, पांच छै साल पहले शिष्यों और दोस्तों की सहायता व प्रोत्साहन और स्थानीय सरकार के समर्थन में न्यांगपन ने 40 लाख य्वान से अधिक धन राशि जुटाकर इस चित्र कला प्रतिष्ठान की स्थापना की।

न्यांगपन ने कहा कि पहले अपने गुरु थांगका कला का विरासत में ग्रहण और संरक्षण करने के लिये इसी प्रकार वाले स्कूल की स्थापना करना चाहते थे, पर तत्कालीन स्थिति की वजह से उन की यह तमन्ना पूरी नहीं हो पायी , पर आज उन्होंने यह सपना पूरा कर लिया है। न्यांगपन ने कहा:

"इस प्रतिष्ठान में अध्यापन के साथ साथ रअकुंग थांगका का असली स्तर व छवि प्रदर्शित भी की जाती है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को वास्तविक रअकुंग थांगका देखने का मौका मिल सके । और ज्यादा प्रतिभाशाली व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिये यह प्रतिष्ठान स्थापित किया गया है, हम विरास में कला को संग्रहित व संरक्षित करने में उत्पादन करते हैं, ऐसा करने से ही अपने काम को और बखूबी अंजाम दे सकते हैं।"

अब लोगों ने धीरे धीरे रअकुंग थांगका को पहचान लिया है, यह एक अच्छा स्थानीय प्रचार मार्क भी है। ज्यादा लोगों ने इस से पहले सिर्फ टी वी पर थांगका को देखा है, पर इस से जुड़ने वाली ज्यादा तफसीलों का पता नहीं है। लेकिन जब लोग थांगका बनाने की पूरी क्रिया देखेंगे, तो वे अवश्य ही इस वास्तविक कला से चमत्कृत रह जाएंगे।

पहले थांगका कला केवल मठों में प्रचलित था, बाजार में उस का स्थान नहीं था, जबकि आज इस से स्थानीय वासियों को खुशहाली का मौका मिल गया है, इधर सालों में बाजार में थांगका की मांग आपूर्ति से अधिक है, अब रअकुंग क्षेत्र में हर वर्ष में जो थांगका चित्रित हुए हैं, वे सब के सब बिक गये हैं। इससे बहुत ज्यादा स्थानीय वासी खुशहाल हो गये हैं। न्यांगपन ने उदाहरण देते हुए कहा कि इसी थांगका उद्योग से 80 प्रतिशत स्थानीय परिवारों ने अपनी कार भी खरीद ली है। उन्होंने कहा कि अब सरकार ने हमें स्कूल की स्थापना का समर्थन दिया ही नहीं , बल्कि हमारे लिये उदार नीतियां भी निर्धारित की हैं, गत वर्ष राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लेने का सभी खर्चा सरकार ने उठा लिया है। इतनी अनुकूल स्थिति में हम और अधिक लोगों को थांगका कला को जानने और पसंद करने को संकल्पबद्ध हैं।

अपनी भावी अभिलाषा का उल्लेख करते हुए न्यांगपन ने कहा:"आइंदे हमारा थांगका कला चीनी स्याही चित्र व तेल चित्र की तरह विश्वव्यापी मान्यता प्राप्त करे। मुझे उम्मीद है कि दसियों साल बाद उच्च कोटि की थांगका कलात्मक कृति चीनी स्याही चित्र की तरह दसियों करोड़ य्वान महंगी होगी।"

रअकुंग थांगका को अब सर्वमान्यता प्राप्त हो गयी है, लेकिन न्यांगपन चाहते हैं कि लोग थांगका को एक विशेष किस्म वाले कला को और तफसील से समझ लें। उन का मानना है कि यदि लोग सच्चे मायने में शिल्पकारों द्वारा अपने खून पसीने से सिंचित थांगका कला और इस कला के पीछे छिपे सामाजिक व सांस्कृतिक विषयों को ठीक से समझ लेंगे, तो यह कला निश्चय ही अंतर्राष्ट्रीय बुलंदी पर पहुंच सकेगा और उस का विरासत के रुप में ग्रहण किया जायेगा।


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