क्या आप को मालूम है कि उत्तर पश्चिम चीन के छिंगहाई प्रांत में तिब्बती लामा बौद्ध धर्म के अंगिनत अनुयायी और बड़ी तादाद में मठ पायी जाती हैं। अति सुंदर, सूक्ष्म, रहस्यमय, महान और प्राचीन धार्मिक कलात्मक कृति रअकुंग थांगका का जन्म यहां पर हुआ है और धीरे धीरे वह अपनी बुलंदी पर पहुंच गया। हाल ही में हमारे संवाददाता ने चीनी कला व चित्रण मास्टर, राष्ट्र स्तरीय अभौतिक विरासत रअकुंग थांगका कला के उत्तराधिकारी शिल्पकार न्यांगपन के साथ साक्षात्कार किया और उन की रंगबिरंगी थांगका दुनिया के भीतर प्रविष्ट किया।
हर थांगका कृति के पीछे कहानी छिपी हुई है, जब न्यांगपन तिब्बती कलात्मक कृति थांगका का उल्लेख करते हुए उक्त बात कह रहे थे, तो हमने देखा कि उनके पीछे ढेर सारी चमकदमक विविधतापूर्ण लाल, भूरी और शुद्ध सुनहरी सूक्ष्म थांगका कृतियां रखी हुई हैं।
थांगका की बड़ी विशेषता यह है कि बेमूल्य रंगों और विशेष तकनीक के माध्यम से पांच,छै किस्मों वाले प्राकृतिक खनिज रंगों से सौ से ज्यादा रंग बनाये जाते हैं, जबकि थांगका बनाने में उपयोगी धागे और पाऊडर शुद्ध गोल्ड से तैयार किये जाते हैं, इसी प्रकार के तौर तरीकों से तैयार थांगका सूक्ष्म, बारीकी व चमकदार ही नहीं, रंग भी कभी भी नहीं फीका पड़ता। साथ ही एक कुशल चित्रकार बनने के लिये प्रतिभा होना और अनेक वर्षों का कठिन अभ्यास करना अत्यावश्यक भी है।
थांगका तिब्बती लामा बौद्ध धर्म से घनिष्ट रुप से जुड़ने वाली कला है, थांगका के जरिये बौद्ध धार्मिक कथाओं को प्रदर्शित करना चीनी तिब्बती जाति में पुरानी परम्परा बनी रही है, बहुत ज्यादा तिब्बती लोग बड़े सम्मान के साथ घर में एक थांगका खरीदकर लटकाते हैं, फिर हर रोज इस की पूजा करते हैं। धार्मिक संस्कृति और थांगका कला का मूल गहरा ही नहीं, सैकड़ों वर्षों में विरासत के रुप में ग्रहण के जरिये तिब्बती जनता के जीवन में भी घर कर चुका है, इतना ही नहीं, तिब्बती लामा बौद्ध धर्म और मठों को छोड़कर तिब्बती चिकित्सा, खगोल शास्त्र और भूगोल शास्त्र पर उस का प्रभाव भी है।
बौद्ध धर्म के संस्थापक शाक्यमुनि के जन्म से लेकर आज तक के पिछले दो हजार वर्ष अधिक समय में अक्षरों और चित्रों के माध्यम से उन की कहानियों का व्यापक रुप से विवरण किया जाता है। थांगका कला सब से पहले भारत से नेपाल में प्रविष्ट हुई, फिर उस का प्रचार नेपाल से चीन के भीतरी इलाकों में हो गया, थांगका कला ने तिब्बती लामा बौद्ध धर्म के प्रमुख कलात्मक वाहन के रुप में तिब्बती जातीय संस्कृति में आसाधारण महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
थांगका कला सब से पहले मठों में उभर आया है, तिब्बती लामा बौद्ध धर्म में जिस थांगका में बुद्ध की तस्वीर हू ब हू चित्रित की गयी है, वह बुद्ध का प्रतिनिधित्व माना जा सकता है, साथ ही तिब्बती जाति को अपने परम्परागत खानाबदोश जीवन की वजह से साल के चार मौसमों में स्थानांतरित करना पड़ता है, थांगका को इधर उधर ले जाना काफी सुविधापूर्ण है, इसलिये थांगका के जरिये बुद्ध की कहानी प्रदर्शित की जाती है, धीरे-धीरे बौद्ध धार्मिक अनुयाइयों में इसी प्रकार वाले थांगका की बुद्ध के रुप में पूजा करने की परम्परा प्रचलित हो गयी है। बौद्ध धार्मिक विषय थांगका की बड़ी विशेषता ही है, लेकिन शिल्पकार न्यांगपन के विचार में थांगका की विषय वस्तुएं बौद्ध धार्मिक विषय तक सीमित नहीं है। उन्होंने इस का परिचय देते हुए कहा:
"चिकित्सा, खगोल, भूगोल समेत तमाम विषयों की अभिव्यक्ति थांगका के जरिये की जा सकती है, इसी कारण से थांगका कला आज तक बनाये रखे हुए है और वह हमारी विविध जातीय संस्कृतियों में सब से अद्भुत निधियों में से एक बन गया है।"