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    पेइचिंग का स्वर्ग मंदिर
    2015-08-03 16:58:34 cri

    शाही आकाश भवन और प्रतिध्वनि भित्ति

    वृत्ताकार ईश्वर यज्ञ वेदी के उत्तर में शाही आकाश भवन स्थित है, जिस का द्वार दक्षिण की ओर खुला है। बाहर से यह भवन वृत्ताकार चारदीवारी से घिरा हुआ है और दक्षिण में तीन ग्लेज्ड द्वार बनाए गए हैं। शाही आकाश भवन और पूर्वी व पश्चिमी सहायक भवन उस की प्रमुख इमारतें हैं, जहां देवोपासने के लिए देवता के नाम-तख्ते रखे जाते थे। सम्राट च्या जिंग के 9वें वर्ष (सन्1530) में शाही आकाश भवन का निर्माण शुरू हुआ, उस समय उस का नाम थेई शन भवन रखा गया था। सम्राट च्या जिंग के 17वें वर्ष में उस का नाम ह्वांगछ्योंग यु (शाही आकाश भवन) में बदला गया। सम्राट छ्येन लुंग के 17वें वर्ष (सन् 1752) में उस की मरम्मत के बाद गुंबजदार छत पर सोने का मुलम्मा चढ़ा था। और वह एकल छज्जा वाला वृत्ताकार निर्माण भी है। उस की छत नीले ग्लेज्ड खपरैलों से आच्छादित है जो नीले आसमान का द्योतक है। सोने के आठ स्तंभों और छज्जों के आठ खंबों पर वह विशाल नीली छत टिकती है। तीन तल्लों की पाटन वाली सिलिंग बहुत सूक्ष्म और उत्कृष्ट दिखाई देती है।

    शाही आकाश भवन के सामने मुख्य द्वार तक जाने वाले पत्थर पथ पर उत्तर से दक्षिण तक तीन सपाट पत्थर हैं, जिस का नाम त्रिगूंज शिला है। जब शाही आकाश भवन के द्वार व खिड़की बंद हैं और आसपास कोई शोरगुल व बाधा नहीं होने की स्थिति में यदि लोग प्रथम पत्थर के पर खड़े होकर तालियां बजाते है, तो एक बार प्रतिध्वनि आती है। यदि दूसरे पत्थर पर तालियां बजाते है, तो दो बार प्रतिध्वनि आती है। जबकि तीसरे पत्थर पर तालियां बजाने पर तीन बार प्रतिध्वनि सुनाई देती है।

    शाही आकाश भवन प्रतिध्वनि देने वाली वृत्ताकार चारदीवारी से घिरा हुआ है। दीवार की भीतरी भित्ति की सतह सपाट व चिकनी है, जिससे प्रतिध्वनि साफ़ साफ़ सुनाई देती है। जब दो आदमी अलग अलग तौर पर पूर्वी व पश्चिमी सहायक भवनों के पीछे दीवार से सटे खड़े हों और एक आदमी उत्तर की ओर बोलता है, तो आवाज का स्वर-तरंग दीवार से निरंतर परावर्तन करते हुए आगे चलती बढ़ती है और अंततः दो एक सौ मीटर दूर दूसरी ओर की भित्ति तक पहुंच जाता है। चाहे बोलने की आवाज़ कितनी भी छोटी क्यों न हो, दूसरी ओर खड़े लोग को वह साफ़ साफ़ सुनाई देती है। यह बिलकुल चमत्कार की बात है और लोगों को स्वर्ग व मानव के बीच परस्पर संपर्क कायम होने का रहस्यमय अनुभव दिया जाता है, इसलिए इस दीवार को प्रतिध्वनि भित्ति का नाम दिया गया है।

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