अतीत में स्वर्ग मंदिर मिंग और छिंग राजवंशों के सम्राटों द्वारा"स्वर्ग की पूजा-अर्चना"व"अच्छी फ़सलों की प्रार्थना"की जाने वाला स्थल था। वह पेइचिंग शहर के जङ यांग मन द्वार के पूर्व में खड़ा है। मंदिर के उत्तरी भाग की दीवार गोलाकार है और दक्षिणी भाग की दीवार वर्गाकार है, जो"गोलाकार आकाश व वर्गाकार ज़मीन"का प्रतीक है। पेइचिंग का स्वर्ग मंदिर दोहरी दीवारों से घिरा हुआ है, जो भीतरी व बाहरी दोनों भागों में बंटता है। इस का कुल क्षेत्रफल 273 हेक्टर है और इस की प्रमुख इमारतें भीतरी भाग में केंद्रित हुई हैं।
स्वर्ग मंदिर का निर्माण मिंग राजवंश के सम्राट योंग ल के 18वें वर्ष(सन् 1420) में शुरू हुआ था। फिर मिंग राजवंश के सम्राट च्या जिंग और छिंग राजवंश के सम्राट छ्येन लुंग आदि के शासन काल में इस का पुनःनिर्माण व विस्तार किया गया था। वह अत्यन्त महान, भव्य व आलीशान दिखता है तथा माहौल में गांभीर्य व शान व्याप्त है । स्वर्ग मंदिर अपनी गहन संस्कृति और शानदार वास्तु कला से प्राचीन पूर्वी सभ्यता का निरूपण बन गया है।
स्वर्ग मंदिर मिंग व छिंग राजवंशों की वास्तु कला व कारीगरी का संग्रह है, जो बहुत विशाल, भव्य व शानदार दिखता है और चीन में अब तक मौजूद सब से बड़ा प्राचीन ईश्वर पूजा वास्तु समूह है। मंदिर की डिजाइन सुनियोजित है, अद्भुत वास्तु-संरचना है और शानदार वास्तु बनावट से विश्वविख्यात है। न केवल चीन के वास्तु इतिहास में इस का अहम स्थान है, बल्कि विश्व वास्तुकला का मूल्यवान धरोहर भी है।