भरपूर प्राकृतिक संसाधनों वाली भूमि
ईली नदी-घाटी का मौसम समशीतोष्ण व नम है और खेतीबारी व पशुपालन के अनुकूल है। पश्चिमी हान और उसके बाद के राजवंशों में यहां भूमि-उद्धार कार्य शुरू हुआ था। 1842 में लिन च-श्वी, जिन्होंने अफीम पर पाबन्दी लगा दी थी और क्वाडंतुडं में बरतानवी साम्राज्यवादी आक्रमण का विरोध किया था, को भूमि-उद्धार कार्य के लिए छिडं दरबार द्वारा पद से गिरा कर ईली भेजा गया। उन्होंने जांच-पड़ताल की, जल-संरक्षण परियोजनाएं बनाईं और भूमि-उद्धार के लिए सैनिकों व विभिन्न जातियों की जनता को प्रोत्साहित किया। लिन च-श्वी की स्मृति में एक तोरण द्वार का निर्माण किया गया। काश नदी से ह्वेइय्वान तक 100 किलोमीटर लम्बी सिंचाई-नहर का नाम "लिन च-श्वी नहर" रखा गया।
बिजली का उत्पादन करने के लिए लिन च-श्वी नहर को इस समय चौड़ा और गहरा किया गया है। विशाल उपजाऊ खेतों में बुवाई अथवा कटाई के समय ट्रैक्टरों के घड़घड़ाने की आवाज दूर तक सुनाई देती है। कृषि में यंत्रप्रयोग की दृष्टि से यह स्थान सारे देश के अन्य स्थानों से आगे है। नदी-घाटी में प्रचुर मात्रा में गेहूं, मक्का और धान पैदा होता है। यहां के तरबूज व फल मशहूर हैं। ईली नदी में बेशुमार मछलियां हैं, जिनमें स्टर्जियन बहुत मशहूर है।
ईनिडं शहर की सड़कों के किनारों पर ऊंचे-ऊंचे भोजवृक्ष के पेड़ हैं जो रिहायशी इमारतों के आंगनों को छांह प्रदान करते हैं। उद्यानों में पौधे फूलों से लदे हैं और बागों से फलों की भीनी-भीनी खुशबू आती है। ईनिडं फूलों की नगरी कहलाता है।
ईनिडं में हमने एक परम्परागत मुस्लिम पर्व में भाग लिया। सड़कों पर बेलबूटेदार टोपियां और फूलदार स्कर्ट पहनी हुई सुन्दर वेवुर युवतियों, जातीय पोशाक व बूट पहने हुए रूपवान कजाख घुड़सवारों, हरे चोगे पर कमरबन्द बांधे हुए हृष्ट-पुष्ट मंगोल चरवाहों और रंगीन किनारों पर बेलबूटे बनी हुई कमीज पहने तारतार नौजवानों के ठट लगे हुए थे। हान जाति के स्थानीय लोगों के साथ हम एक वेवुर के घर गए। उसका मकान बड़ा साफ-सुथरा था, अंगूर की हरी लताओं के नीचे फूलदार कालीन बिछी हुई थी। एक मेज पर, जिसके चारों ओर मेजबान व मेहमान बैठे थे, बातचीत कर रहे थे और खुशियां मना रहे थे, तरबूज खरबूजा, अंगूर और खाने की अन्य चीजों के ढेर लगे हुए थे। हमने मंगल कामना की कि वे त्यौहार के दिन की तरह रोज खुशियां मनाएं।