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    ईली नदी के तट पर
    2015-06-01 09:33:55 cri

    स्वर्ग के घोड़ों का घर

    ईली नदी घाटी में सिंचाई की सुविधाओं से युक्त अनेक हरे-भरे चरागाह हैं। ग्रीष्मकालीन चरागाह ऊंचे मैदानों में फैले हैं जहां अधिक वर्षा होती है। शीतकालीन चरागाह धूप लगने वाली उन पहाड़ी ढलानों पर स्थित हैं जहां बरफीली आंधी कम चलती है और आबोहवा गरम व नम है। हम गर्मियों के अन्त और शरद के शुरू में ईली पहुंचे थे। हमें थ्येनशान पर्वतमाला की तलहटी में महीन ऊन वाली मशहूर कुनास भेड़ें तैरते बादल सी दिखाई दीं और हृष्ट-पुष्ट ईली घोड़े चरागाह में दौड़ते दिखाई दिए।

    प्राचीन काल से ही ईली घोड़े के लिए मशहूर रहा है। पश्चिमी हान राजवंश में वे "स्वर्ग के घोड़े" के नाम से जाने जाते थे। पहले ईली नदी-घाटी साएस जाति के लोगों का चरागाह थी। ईसा पूर्व की दूसरी सदी के मध्य काल में ऊसुन जाति के लोग कानसू गलियारे से यहां आ बसे। जहां पानी व घास मिलती, वहां वे जाते। उनके इलाके में बेशुमार घोड़े होते।

    119 ई.पू. में पश्चिमी हान राजवंश के दूत चाडंछ्येन ने विशेष रूप से ऊसुन की यात्रा की थी। ऊसुन के शासक ने चाडं छ्येन का मैत्रीपूर्ण स्वागत किया और बदले में पश्चिमी हान राजवंश के सम्राट को बहुत से शानदार घोड़े सहित दर्जनों दूत भेजे। दस साल बाद ऊसुन के राजा की शादी च्याडंतू के राजकुमार ल्यू च्येन की बेटी से हुई। उसने राजकुमार को भेंट में एक हजार हृष्ट-पुष्ट घोड़े दिए। "चाडं छ्येन की जीवनी, हान राजवंश का इतिहास" में यह लिखा हैः "हान राजवंश के ऊती सम्राट को ऊसुन का बढ़िया घोड़ा मिला था जो स्वर्ग के घोड़े के नाम से प्रख्यात था। बाद में उसे "खून की भांति पसीने बहने वाला तावान का एक घोड़ा प्राप्त हुआ, जो और अधिक शक्तिशाली था। उसने उसका नाम शिची(पश्चिमी प्रदेश) घोड़ा रखा।"

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