प्राचीन भग्नावशेष
ईली नदी के दक्षिणी किनारे से लेकर थ्येनशान पर्वत-माला की तलहटी तक रास्ते के दोनों किनारों पर कब्रें नजर आती हैं। इनमें कुछ कब्रें काफी शानदार हैं, जिनसे ऊसुन जाति के लोगों के शौर्य का पता चलता है। अन्य कब्रों से उनकी सम्पन्नता का भी पता चलता है। इन कब्रों की खुदाई से प्राप्त रेशमी कपड़े के टुकड़ों से जाहिर होता है कि उस समय रेशम मार्ग पर अन्यधिक व्यापार होता था। चाओसू और होछडं में छठी व सातवीं सदी के तुर्कों की प्रस्तर-मूर्तियां मिलीं। इनके दाएं हाथ में प्याला है और बाएं हाथ में तलवार है, पैरों पर बूट हैं और कमर में पेटी है। प्रस्तर-मूर्तियों का रुख पूर्व की ओर है, ऐसा लगता है कि वे पश्चिमी क्षेत्र की यात्रा पर जाते समय पूर्वी क्षेत्र को छोड़ने में अनकना रहे हों।
थाडं राजवंश के अर्द्धेदु नगर का खंडहर ईनिडं शहर के उत्तर-पूर्व 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। और रेशम मार्ग के नए उत्तरी मार्ग में एक महत्वपूर्ण नगर था। एक तुरफान आलेख के अनुसार एक जातीय व्यापारी ने कर्ज में एक ही बार में रेशमी कपड़ों के 275 थान दिए थे। इससे उस जमाने में रेशमी कपड़ों के फलते-फूलते व्यापार का पता चलता है। अर्द्धेदु नगर से पूर्व की तरफ थिडंचओ(आज का जिमसार), दक्षिण की तरफ क्वेइच(आज का कूचा) और पश्चिम की तरफ स्वेये तक पहुंचा जा सकता है।
थाडं राजवंश के प्रारंभ में बौद्धभिक्षु ह्येन च्वाडं लिडंशान चोटी(वर्तमान थ्येनशान पर्वतमाला की मुसुर चोटी) को पार करने के बाद थ्येनशान पर्वतमाला की उत्तरी तलहटी के किनारे-किनारे पश्चिम की ओर बढ़ा। स्वेये में पश्चिमी तुर्कों के खान द्वारा उसका हार्दिक स्वागत-सत्कार किया गया। खान ने उसे भेंट में ब्रोकेड के 50 थान दिए। वह उसे बिदा करने दस ली से भी अधिक दूर गया।
679 ईं. में थाडं अधिकारी फेइ शिडंच्येन ने शाही हुक्म पर स्वदेश लौट रहे फारसी राजकुमार का रक्षार्थ साथ दिया था। वह राजकुमार को बिदा करने स्वेये तक गया। नए उत्तरी मार्ग में उस समय के मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान के चिन्ह आज भी मौजूद हैं।