रंगबिरंगे लालटेन
य्वान श्याओ उत्सव चीन का परम्परागत त्योहार है, जिस का इतिहास आज तक दो हज़ार से ज़्यादा वर्ष पुराना है। य्वान श्याओ उत्सव में लालटेनों के सौंदर्य का लुत्फ लेने की रीति पूर्वी हान राजवंश के मिंग ती काल से शुरू हुई थी। सम्राट मिंग ती बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जब उन्होंने सुना कि साल के पहले माह की 15वीं तारीख को भिक्षुओं द्वारा बुद्ध के शरीरांग के दर्शन करने और दीपक जलाकर बुद्ध की पूजा करने की प्रथा है, तो उन्होंने आदेश दिया कि राज महल और मठों में उसी रात दीपक जला करके बुद्ध की पूजा की जाए। इसके अलावा पदाधिकारियों और आम जनता को भी उसी रात को लालटेन लगाना चाहिए। बाद में बौद्ध धर्म का यह उत्सव धीरे धीरे समाज में एक लोकप्रिय त्योहार बन गया। यह उत्सव राजमहल से समाज और मध्य चीन से पूरे देश में फैला।
एक अन्य दंतकथा में कहा जाता है कि पुराने समय में अनेक मांसहारी जानवर जगह जगह जाकर मनुष्य व मवेशियों को मार कर खाते थे। लोगों ने एकत्र करके उन्हें मारने की कोशिश की। स्वर्ग से आयी एक पक्षी गुमराह होने के कारण धरती पर आयी, लेकिन अज्ञात शिकारी ने उसे मार डाला। इसे जानकर जेड सम्राट को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने स्वर्ग के सैनिकों को जंग य्ये माह की 15वीं तारीख को धरती पर आग लगाने का आदेश दिया, ताकि पृथ्वी पर मानव, जानवर व संपत्ति जलकर राख बनें। जेड सम्राट की बेटी एक दयालु लड़की थी। उस ने बेगुनाह आम जनता को खतरे से बचाने के लिए चुपके से धरती पर उतरी और इस खबर को लोगों को बताया। यह सुनते ही सब लोग इतना डरते थे कि हाथपांव फूल हो गए। कुछ समय के बाद एक वृद्ध ने एक उपाय सोचा। उन्होंने कहा,"जंग य्ये माह की 14, 15 व 16 वीं तारीख तीन दिनों में हर हर परिवार घर में लालटेन लगाएं, पटाखे फेंकें और आतिशबाजी छोड़ें। जिस से जेड सम्राट को यह भ्रम हो सकेगा कि मानव जाति अग्नि कांड में सभी मारी गयी हो।"
यह सुनकर लोगों ने मंजूरी दी और तैयारी करने लगी। जंग य्ये माह की 15वीं तारीख की रात को जब जेड सम्राट ने नीचे की ओर झांका तो पाया कि धरती पर लाल लाल रोशनी से चमकी है और ऊंची ऊंची आवाज़ गूंज रही है। यह हाल तीन रात तक बना रहा। जेड सम्राट ने माना कि यह सब अग्नि से पैदा हुई है, तो बड़ी खुशी हुई। इस तरह लोगों ने अपनी जान व संपत्ति की रक्षा की। इस सफलता की याद रखने के लिए हर साल के पहले माह की 15वीं तारीख को लोग लालटेन लगाते हैं और आतिशबाजी छोड़ते हैं।