पंकजः हमें अगला पत्र भेजा है रूपियाबथन गांव, जिला नलबाड़ी असम से श्री हंगशा दत्ता जी ने। इन्होंने हमें अपने पत्र के माध्यम से च्यांगशी पर्यटन ज्ञान प्रतियोगिता के उत्तर भेजे हैं। तो हंगशा दत्ता जी आपने ये बहुत अच्छा किया जो हमें च्यांगशी पर्यटन प्रतियोगिता के उत्तर पत्र द्वारा भेजा, लेकिन खेद की बात है कि आप के उत्तर पत्र बहुत देर से हमारे पास पहुंचे। क्योंकि यह प्रतियोगिता पिछले साल में आयोजित की गयी। खैर, कोई बात नहीं, अब आप हाएनान प्रतियोगिता में भाग लीजिये और जल्द ही इस के उत्तर हमें भेजिये। शायद इस बार आप का पत्र ठीक समय पर हमारे पास पहुंच सके।
चंद्रिमाः हमारे पुराने और चिर परिचित श्रोता अनिल ताम्रकार जी ने हमें पत्र के साथ एक ग्रीटिंग कार्ड भी भेजा है, जिसपर ब्लांग अल्पसंख्यक जाति की एक महिला का चित्र है जो अपनी पीठ पर एक लंबे आकार वाली टोकरी रखकर जा रही है, जिसमें उनका करीब एक वर्ष का बच्चा बैठा है। इस महिला ने टोकरी को कपड़े के एक पट्टे से बांधकर उस पट्टे को अपने सिर पर रखकर दोनों हाथों से पकड़ रखा है। और इस ग्रीटिंग कार्ड के पीछे अनिल जी ने लिखा है कि हम सुधरेंगे तो देश सुधरेंगे। इसके बाद अनिल जी ने नीचे अपने हस्ताक्षर किये हैं।
पंकजः इसके अलावा अनिल जी ने हमें अपने पत्र में लिखा है कि हमारे कार्यक्रमों के माध्यम से इन्हें और दूसरे श्रोताओं को बहुत सी नई जानकारियां मिलती हैं और सीआरआई ही एक ऐसा माध्यम है जिसने अपने सभी श्रोताओं को एक सूत्र में बांध रखा है। तो अनिल जी आपका हमारे कार्यक्रमों की प्रशंसा करने के लिये धन्यवाद और हम आगे भी आपके लिये ऐसे ही उच्च श्रेणी के कार्यक्रम बनाते रहेंगे। जिससे हमारे श्रोताओं के ज्ञान और उनकी संख्या में बढ़ोतरी हो।
चंद्रिमाः पंकज जी हम अपने श्रोताओं से बार बार कहते हैं कि वो हमें जो भी लिखें सुंदर और साफ अक्षरों में लिखें। अगर उनकी लिखावट अच्छी नहीं है तो वो कम्प्यूटर सेंटर पर जाकर या फिर हिन्दी वाले टाइप राइटर पर पत्र को टाइपकर हमें लिख सकते हैं। मैं ऐसा इसलिये कह रही हूं क्योंकि हमारे एक श्रोता हैं गिरधर मार्डिया जी इन्होंने हमें पत्र लिखा है 865 इंदिरानगर, अहमदाबाद से। बहुत मुश्किल से हम इनका नाम और पता पढ़ पा रहे हैं। लेकिन इन्होंने जो हमें डेढ़ पन्ने का पत्र लिखा है वो हम काफी कोशिशों के बावजूद भी नहीं पढ़ पाए इसलिये हम गिरधर जी से आग्रह करते हैं कि अपना अगला पत्र हमें साफ अक्षरों में लिखें और ऐसा न कर पाने में वो हमें अपना पत्र टाइप करके भी भेज सकते हैं। हमें बहुत दुख होता है जब हम अपने किसी श्रोता का पत्र मिलने के बाद भी उसे अपने कार्यक्रम में शामिल नहीं कर पाते हैं।
पंकजः श्रोता दोस्तों, आपसे बातें करते हुए समय इतनी जल्दी बीत गया कि पता नहीं चला और अब आज के कार्यक्रम को समाप्त करने का वक्त भी आ गया। आशा है आप लोगों को आज के कार्यक्रम से कुछ आनंद मिला होगा।
चंद्रिमाः हालांकि न चाहें, पर हमें श्रोताओं से बिदा लेनी पड़ेगी। अगले हफ्ते हम ठीक इसी समय यहां फिर मिलेंगे। नमस्कार।
पंकजः नमस्कार।