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लंदन ऑलंपिक
2012-08-03 09:04:12

विकासः अब हम ऑलंपिक की चर्चा खत्म करके कुछ अन्य कॉमेंट पढ़ें। भुज-कच्छ गुजरात के नानजी जानजानी ने हमें एक लंबा सा कॉमेंट लिखा है। इस का विषय ऐसा हैः इतिहास में देखा जाए तो चीन के ह्वेन सान ने भारत की यात्रा की थी। भारत की यात्रा के दौरान उन्हें बहुत ही कठिनाइयां सहन करनी पड़ी थी। ह्वेन सांग जब चीन से भारत की ओर यात्रा शुरू की, तब उस समय के चीनी शासक ने इस यात्रा पर प्रतिबंध रखा था। ह्वेन सांग फिर भी भारत की ओर निकल पड़ा। चीन में गोबी के मरुस्थल से होते हुए उनके साथ जो तीन साथी थे, वे मुश्किलों का सामना न करने के कारण ह्वेन सांग को बीच में छोड़ कर वापिस चले गये। गोबी के मैदान में जब पीने का पानी खत्म हो गया तब ह्वेन सांग जीवन के प्रति बड़ा संघर्ष किया। पानी के बिना बिल्कुल मृत्यु के नज़दीक देखकर रात्रि गुजारनी थी। जब सुबह हुई तब पेड़ के पत्तों पर ओंस की बूंदे जमी थी। ह्वेन सांग ने पेड़ के पत्तों पर से अपनी जीभ से ओंस की बूंदों को चाट चाट कर अपनी प्यास बुझाई। इस तरह वह कश्मीर में दाखिल हुए।

चंद्रिमाः कश्मीर के राजा ने ह्वेन सांग का बड़ा स्वागत किया और बहुत ज्ञान की चर्चा हुई। एक मास से भी ज्यादा समय ह्वेन सांग कश्मीर में रूकने के बाद पंजाब से होते हुए भारत के बहुत सारे भूभागों की यात्रा की। उस समय राजा हर्षवर्धन का शासन था। ह्वेन सांग राजा हर्षवर्धन के यहाँ तीन महीने तक रूक कर भारत की कई भाषाएं सीखी और बौध धर्म का अभ्यास किया। 17 साल की भारत की यात्रा के बाद ह्वेन सांग वापिस चीन जाते समय अपने साथ धर्मग्रंथो को ले गये। इस चीनी मुसाफिर ने चीन में भारतीय समाज जीवन , धर्म, संस्कृति, का अभ्यास किया और बहुत सारे पुस्तक लिखे। ह्वेन सांग का नाम आज भी भारतीय इतिहास में बहुत ही आदर और सन्मान के साथ लिया जाता है। स्कूलों में उनके बारे में पढ़ाया जाता है। ह्वेन सांग को हम सदा याद रखेंगे।

विकासः ह्वेन सांग सचमुच एक महान बौद्ध भिक्षु थे, जिन्होंने चीन व भारत के आदान-प्रदान के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। और हम नानजी जानजानी साहब को हमारे श्रोताओं को ह्वेन सांग के बारे में इतनी जानकारियां देने के लिये बहुत धन्यवाद कहते हैं।

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