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पेइचिंग में सब से बड़ी इनडोर व्यायामशाला
2012-07-23 15:07:49

विकासः अब बारी है गोरखपुर, उत्तर प्रदेश के स्वर्गीय मीनू रेडियो श्रोता कल्ब के अध्यक्ष बद्री प्रसाद वर्मा अनजान की। अपने पत्र में उन्होंने यह लिखा है कि आदरणीय भाई विकास व बहन चंद्रिमा जी, नमस्कार। आप दोनों जब आप का पत्र मिला प्रोग्राम पेश करते है, तो मानों ऐसा लगता है जैसे आसमान से फूलों की बरसात हो रही हो। सारा वातावरण महक उठता है। और जी चाहता है इस प्रोग्राम को दिन रात सुनता रहूं, और फूलों की बरसात में भीगता रहूं। पर खेद की बात है कि हमारे ई-मेल पत्रों को अभी तक नहीं पढ़ा गया। उन्होंने यह सलाह भी दिया है कि आप का पत्र मिला कार्यक्रम में दो भाग विभाजित होना चाहिए। एक है हमारी ई-मेल प्रोग्राम, जिस में आप श्रोताओं की ई-मेल को पढ़ सकते हैं। और दूसरा है हमारे डाक पत्र प्रोग्राम, जिस में आप डाक से भेजे पत्रों को पढ़ सकते हैं।

चंद्रिमाः सब से पहले हम सच्चे दिल से बद्री जी को धन्यवाद देते हैं। क्योंकि उन्होंने हमारे कार्यक्रम की प्रशसा की, और प्रशंसा के साथ साथ उन्होंने अपने सुझाव भी दिया। पर आप का सुझाव शायद हाल में लागू नहीं किया जा सकता। क्योंकि डाक से भेजे पत्रों की अपेक्षा, ई-मेल द्वारा भेजे पत्रों की संख्या ज़रा कम है। इसलिये हम अपने कार्यक्रम में ई-मेल को एक विशेष स्थान अभी तक नहीं दे सकते। पर हम ज़रूर दोनों तरीके से भेजे पत्रों पर ध्यान देंगे, और उन में से अच्छे पत्र चुनकर पढ़ेंगे। अगर भविष्य में हमारे ज्यादा श्रोता ई-मेल द्वारा हमें पत्र भेज सकेंगे, तो हम ज़रूर आप की इच्छा से ई-मेल का एक नया कार्यक्रम बनाएंगे।

विकासः नारनौल हरियाणा के उमेश कुमार ने हमें भेजे पत्र में यह लिखा है कि चीन का तिब्बत कार्यक्रम में मैंने तिब्बती पर्यटन पर एक रिपोर्ट सुना। काफ़ी पसंद आई। मेरे विचार में तिब्बत में मौजूद प्राकृतिक स्थलों की मनमोहक दृश्यावली पर्यटकों के लिये आकर्षण का एक बिन्दु है। जो एक बार यहां आ गया, वह इस की प्राकृतिक मनोहरता का कायल हो जाता है। उन्होंने यह भी लिखा है कि सी.आर.आई. से मेरा जुड़ाव तकरीबन 26 पूर्व हुआ। उस समय रेडियो पेइचिंग के नाम से प्रसारण होता था। कार्यक्रम उस समय भी बढ़िया थे, जिन्हें सुनने का दिल करता था। किंतु वर्तमान में सी.आर.आई. के कार्यक्रम, गुणवत्ता की दृष्टि से काफ़ी बेहतर हैं। प्रस्तुतिकरण का अंदाज भी अधिक प्रभावशाली है। यहां के ज्यादातर उदघोषक चीनी बंधु हैं, किंतु उन की शैली व शुद्ध हिन्दी उच्चारण सराहनीय है।

चंद्रिमाः उमेश जी, आप की बातें सुनकर हम बहुत प्रभावित हैं, और इससे हमें बहुत प्रोत्साहन भी मिला। हम जानते हैं कि चीन में हिन्दी बोलने का वातावरण नहीं है, इसलिये शायद हमारी हिन्दी भाषा बोलने में ज़रा अजीब लगती है। पर हम सभी चीनी उदघोषक ज़रूर दफ़्तर के भारतीय कर्मचारियों से सीखकर अपनी हिन्दी भाषा को एक उच्च स्तर पर पहुंचाने की कोशिश करेंगे। आप का बहुत बहुत धन्यवाद। विकास जी, मेरे पास एक पत्र है, जिस में आप से शिकायत की गयी।

विकासः अरे, क्या हुआ ? चंद्रिमा जी, आप इसे पढ़िये।

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