विकासः अगला पत्र मेरे हाथ में पूर्वी चंपारण बिहार से राम बिलास प्रसाद का है। सबसे पहले उन्होंने अपने कल्ब सिय्योन रेडियो लिसनर्स क्लब की तरफ से प्यार भरा नमस्कार कहा है। आगे उन्होंने कहा है कि उनके क्लब के सदस्य नियमित रूप से हमारे सभी कार्यक्रम सुनते हैं। कार्यक्रम सुनने के साथ-साथ उनके क्लब के सदस्य गांव-गांव में दूसरे लोगों को सी आर आई सुनने के लिए प्रेरित भी करते हैं। उन्होंने यह आग्रह भी किया है कि उनके कल्ब को सी आर आई के मेल लिस्ट में पंजीकृत किया जाए जिससे सी आर आई द्वारा भेजी गई सामग्री उन्हें नियमित रूप से मिले।
चंद्रिमाः रामबिलास जी हमने आपके कल्ब का नाम हमारे मेल लिस्ट में शामिल कर लिया है। आशा है कि आपको नियमित रूप से सी आर आई द्वारा भेजी गयी सामग्री मिलती रहेगी। साथ ही हमारे समर्थन के लिए भी आपका बहुत बहुत धन्यवाद। विकास जी मुंगेर बिहार से हमारे श्रोता राजीव कुमार ने कई प्रश्न पूछे हैं। पहला प्रश्न है चीन में बौद्ध धर्म का प्रवेश कब हुआ था। दूसरा प्रश्न है चीन का अफीम युद्ध क्या है। विकास जी आप पहले प्रश्न का उत्तर दीजिए।
विकासःमैं कोशिश करता हूं। यह सर्वविदित है कि चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार भारत से ही शुरू हुआ था। लेकिन यह अभी तक विवाद बना हुआ है कि चीन में बौद्ध धर्म का प्रवेश कब हुआ था। विद्वानों का किसी नियत समय के बारे में अभी तक एक मत नहीं है। लेकिन बहुत सारे विद्वानों का मानना है कि छिन राजवंश के समय में चीन में बौद्ध धर्म का प्रवेश हो चुका था। इसका उल्लेख महान चीनी इतिहास ग्रंथ श्री ची में भी मिला है। इसलिए माना जा सकता है कि छिन राजवंश के समय में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार चीन में हो चुका था। थांग राजवंश के समय ह्वेन सांग की भारत जाकर बौद्ध सूत्र लाने की कहानी पश्चिम की यात्रा नामक पुस्तक में अंकित है। बौद्ध धर्म ने चीन में प्रवेश करने के साथ यहां की संस्कृति, रीति-रिवाज, रहन-सहन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला। भारत में इस धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या बहुत कम हो गई है लेकिन चीन में अभी भी यह प्रमुख धर्म के रूप में जाना जाता है। आशा है आप हमारे उत्तर से संतुष्ट होंगे।
चंद्रिमाः अब मैं आपके दूसरे प्रश्न का जबाव दूंगी। चीन का अफीम युद्ध वर्ष 1840 के जून से वर्ष 1842 के अगस्त तक चला था। वह चीन व ब्रिटन के बीच चीन में अफीम की तस्करी से छेड़ा हुआ एक युद्ध है। युद्ध का कारण यह है कि ब्रिटेन व्यापारी चीन के क्वांगतुङ समुद्रतटीय क्षेत्र में बीस वर्षों तक अफीम का तस्कर व्यापार करते रहे। और यह स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर हो रही थी। अफीम पिने से न सिर्फ़ लोगों के स्वास्थय पर बड़ी हानि पहुंची, बल्कि उन के घर भी अफीम खरीदने के लिये गरीब बन गये। इस खराब हालत को रोकने के लिये लिन जे शू नामक चीन सरकार के एक अधिकारी ने वर्ष 1839 में क्वांगतुङ प्रांत में जबरदस्ती से अफीम को हटाया। जिससे चीन व ब्रिटन के बीच संघर्ष जल्द ही गंभीर हो गयी, और युद्ध शुरू हुआ। बाद में चीन ने इस युद्ध में हारने के कारण नानचिंग संधि नामक एक असमान संधि पर हस्ताक्षर किया। यह संधि भी चीन के आधुनिक काल में पहला अनिष्पक्ष संधि ही है। क्षतिपूर्ति के अलावा चीन का हांगकांग भी ब्रिटन का कॉलोनी बन गया। यही चीन का अफीम युद्ध है।