तभी हमारा ध्यान एक बुजुर्ग दादी मां पर केंद्रित हुआ। क्योंकि वे लोगों के बीच खड़ी होकर गीत गाते हुए नाच रही थीं। दादी मां का नाम है पादमा यांगजेन, उनकी उम्र 64 साल है। सुबह पौ फटते ही वे अपने परिजनों व पड़ोसियों के साथ लकड़ी काटने यहां आयी हुई हैं, अब उनके आराम का समय है ।
छोटी नदी के तट पर उन्होंने आग जलाई हुई थी, आग पर रखी केतली में दूध की चाय बन रही थी। दादी मां ने गीत गाते हुए हमें गर्म चाय दी।
यह समय सरकार द्वारा लकड़ी काटने के लिए निश्चित किया गया है। मामांग टाऊनशिप, जहां दादी मां पादमा रहती हैं, तिब्बत के लोका प्रिफेक्चर की चोना कांऊटी के लेग्पो क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र में श्रृंखलाबद्ध बर्फीले पर्वत हर जगह देखने को मिलते हैं। जबकि पर्वतों की तलहटियों में हरे भरे घने जंगल व चरागाह दिखाई देते हैं, स्वच्छ नदियां ऊंचे पर्वतों के ऊपर से नीचे की ओर गिरकर आगे बह जाती हैं।
पादमा यांगजेन के परिवार के लिये हर वर्ष लकड़ी काटने में सिर्फ दस दिन का समय है, इसलिये उन्हें इतने कम सीमित समय में साल भर में खाना पकाने व गर्म करने के लिये पर्याप्त लकड़ी काटनी पड़ती है। यह सचमुच एक चुनौती भरा मुश्किल काम है। क्योंकि इस क्षेत्र में बसे हरेक परिवार के लिए यह काम पूरा करना जरूरी होता है, इसलिये वे अकसर साथ मिलकर लकड़ी काटते हैं और एक दूसरे की मदद भी करते हैं, इतना ही नहीं, लकड़ी काटते समय आपस में हंसी मजाक भी करते हैं। हालांकि दादी मां 64 वर्ष की हो गयी हैं, पर वे फिर भी बहुत चंचल व चतुर नजर आती हैं, तबीयत भी बहुत स्वस्थ है। खाली समय में उन्हें गीत गाते हुए नाचना भी अच्छा लगता है। दादी मां ने कहा:
"मुझे गीत गाते हुए काम करना पसंद है। क्योंकि गीत गाने से लोगों का मन बहलाया जा सकता है। यदि काम करते समय मन खुश व हल्का होता है, तो काम करने में कोई थकान नहीं होती।"
शाम को करीब पांच-छह बजे दादी मां पादमा पड़ोसियों के साथ घर वापस जाने को तैयार हैं। लकड़ी काटने की जगह उनके घर से कई किलोमीटर दूर है। वे किराये पर लिये ट्रक पर लकड़ियां लादकर हंसी मजाक करते हुए घर वापस चली गयी।
घर पहुंचते ही दादी मां हाथ मुंह व पांव धोने और बाल संवारने में लग गयीं, फिर विशेष तौर पर अपनी पसंदीदा जातीय पोषाक पहनकर बाहर आयीं। दादी मां पादमा का कद काफी लम्बा तो नहीं है, पर वे बहुत तंदुरुस्त दिखती हैं। उन्होंने बड़े उत्साह के साथ हमें अपने पास बिठाया। हमारी बातचीत उनके घर के गेट के पास शुरू हुई। जब हमने वीडियो कैमरा, कैमरा और माइक्रोफोन आदि उपकरणों को ठीक से लगाया, तो हमारे पास छोटे बड़े जिज्ञासु गांववासी इकट्ठे हो गये। यह सही है, एक दूरस्थ क्षेत्र में बसे लोगों के लिये इस प्रकार का इंटरव्यू वाकई एक आश्चर्य की बात है।