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थांगखा चित्रकार शी होताओ की तमन्ना
2012-12-28 17:34:51

रेकोंग कला चीन में तिब्बती बौद्ध धार्मिक कला का एक अहम भाग है, जिसमें मुख्य तौर पर थांगखा चित्र, त्वेशो चित्र, मूर्ति निर्माण, रंगीन चित्र, डिज़ाइन और घी से बनाया गये फूल आदि शामिल हैं। रेकोंग कला का जन्म छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की थोंगरन कांउटी के लोंगवू नदी के तट पर स्थित रेकोंग में हुआ, तिब्बती भाषा में रेकोंग का मतलब स्वर्ण घाटी है। रेकोंग कला का इतिहास आज से कोई 700 से अधिक वर्ष पुराना है। इतने वर्षों में रेकोंग कला के कलाकार चीन में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश, छिंगहाई, स्छ्वान, कानसू आदि प्रांत और भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के साथ साथ भारत, नेपाल, मंगोलिया और थाईलैंड जैसे देशों में फैला हुआ है। उन्होंने अधिकांश सुन्दर कलात्मक वस्तुएं रचीं। वर्ष 2009 में रेकोंग कला को युनेस्को द्वारा"मानव के गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेष की सूचि"में शामिल किया गया।

थोंगरन कांउटी के लोंगवू नदी के किनारे बसे लोगों के हर परिवार में कोई न कोई व्यक्ति रेकोंग कलात्मक वस्तुएं बनाने में निपुण है। थांगखा चित्रकार शी होताओ लोंगवू नदी के आसपास लोंगवू कस्बे के श्या वूथुन गांव में जन्म हुआ और इसी स्थल में भी वे बड़े हो गये। थांगखा चित्र बनाना श्या वूथुन गांव और शी होताओ परिवार की पीढ़ियों पुरानी शिल्प कला है।

थांगखा तिब्बती भाषा का शब्द है, यह रंगीन रेशमी कपड़े पर चित्रित धार्मिक चित्र है, जिसका विषय मुख्य तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म में कहानियां, तिब्बती जाति के इतिहास में महान व्यक्ति, मिथकों, कथाओं और महाकाव्यों में पात्र और उनकी कहानी शामिल है। तिब्बती बहुल क्षेत्रों में चाहे बड़े या छोटे मंदिर में हो, या हर परिवार के बुद्ध कमरे में क्यों न हो, थांगखा चित्र रखा जाता है।

70 वर्षीय शी होताओ थू जाति के हैं। सात वर्ष की उम्र में वह कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की शाहो कांउटी स्थित लाब्रांग मठ गये थे और मठ में भिक्षु बने अपने चाचा से थांगखा चित्र बनाना सीखने लगे। थांगखा चित्र से संबंधित 60 वर्षों से ज्यादा कलात्मक जीवन में शी होताओ ने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश, भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश, कानसू, शानशी, युन्नान और स्छ्वान प्रांतों का सर्वेक्षण दौरा किया और कदम दर कदम स्वयं की विशेष कलात्मक शैली बनाई। आज तिब्बती बहुल क्षेत्रों और भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के तिब्बती बौद्ध धार्मिक इलाकों में शी होताओ बहुत प्रसिद्ध हैं। भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश, कानसू और छिंगहाई जैसे स्थलों में बहुत ज्यादा तिब्बती बौद्ध धार्मिक मठ उनसे थांगखा चित्र मांगते हैं। वर्ष 2006 में शी होताओ को"चीनी राष्ट्रीय कला और शिल्प का गुरु"पदवी से सम्मानित किया गया और उन्होंने निमंत्रण पर फ्रांस और जापान में अपनी थांगखा चित्र प्रदर्शनी आयोजित की। छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की थोंगरन कांउटी के प्रसारण विभाग की कर्मचारी चोमा त्सो ने जानकारी देते हुए कहा:"वर्तमान में हमारे रेकोंग क्षेत्र में कला और शिल्प के कुल चार गुरु हैं। शी होताओ उनमें से एक हैं और उनका कलात्मक स्तर ऊंचा है। उनके द्वारा बनाए गए थांगखा चित्र के रंग बहुत बढ़िया हैं। रंग बनाने के लिए उन्होंने पांच या छह वर्षों तक प्रशिक्षण लिया था। थांगखा चित्र बनाने में वे बहुत निपुण हैं।"

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