आज युंगपुलाखांग महल तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय का मठ बन गया है, जिसमें कई मूल्यवान भीत्ति चित्र और बुद्ध मुर्तियां हैं जो आज भी सुरक्षित हैं। मठ की प्रबंधन समिति के उप प्रधान भिक्षु फुबु डोर्चे ने जानकारी देते हुए कहा कि इन मूल्यवान सांस्कृतिक चीज़ों के संरक्षण के लिए हर साल टिकट से होने वाली आय का दस प्रतिशत हिस्सा प्रयोग में लाया जाता है। भिक्षु फुबु डोर्चे ने कहा:
"इस राशि का प्रयोग मुख्य तौर पर युंगपुलाखांग महल के बाहर लोहे की बाड़ का निर्माण, महल की स्वर्ण चोटी और मठ में पूजा की जा रही बुद्ध मुर्तियों को गोल्ड भरने में किया जाता है। इस मठ में 24 घंटे दो भिक्षु सतर्कता से तैनात किये गए हैं जो चोर और आग की घटना से बचने के लिये गश्त लगाते रहते हैं। युंगपुलाखांग में पहले लकड़ी के मेज़ रखे गए थे लेकिन आग की घटना को रोकने के लिए इनकी जगह लोहे की मेज़ रखी गई है। पहले तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी घी के दीपक जलाकर भवन में प्रवेश करते थे, लेकिन वर्तमान में इसपर प्रतिबंध लगाया गया है। भीत्ति चित्र के संरक्षण के लिए हमने नियम बनाया कि पर्यटक और अनुयायी भवन के अंतर फोटो नहीं खींच सकते। घी के दीपक ले कर आने वाले अयुयायी भित्ति चित्र के आसपास नहीं जा सकते।"