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    मैत्री चोटी की तलहटी में
    2015-03-09 08:48:27 cri

    सीमा रक्षकों की अभिरुचियां

    इस सीमा चौकी के मकान के अहाते में जिन्दादिल खरगोश इधर-उधर उछलते कूदते नजर आए। हमने सुना कि इन खरगोशों की नस्लें सीमा रक्षकों ने खुद अपनी जन्मभूमि से लाई हैं। यहां मुझे बत्तखों की जोरदार आवाज भी सुनाई दी और इन बत्तखों के बच्चे भी सीमा रक्षक अपने घरों से ले आए थे। यहीं नहीं , हमने आकाश में उड़ते हुए कबूतर भी देखे और वे भी पालतू थे।

    सचमुच यह बात मेरी समझ में नहीं आई कि इस सीमा चौकी में जहां प्राकृतिक जलवायु इतनी खराब है, कैसे खरगोश, बत्तख और कबूतर पाले जा सकते हैं और वे भी इतनी तेज गति से पले-बढ़े हैं। जब भी कोई सीमा रक्षक छुट्टी बिताकर घर से लौटता है तो वह अपने साथ साग-सब्जियों व फूलों के बीज जरूर लाता है। कभी-कभी वे अपनी जन्मभूमि से अंजलि भर मिट्टी भी साथ लाते हैं।

    ये सीमा रक्षक सछ्वान, हनान, शेनशी व हपेई प्रांतों अथवा शिनच्याडं प्रदेश से आए हैं।

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