इडंशिन झील
सितंबर महीने के मध्य में मैं पालीखुन से रवाना होकर उत्तर की ओर बढ़ा और थ्येनशान पर्वतमाला की एक शाखा और अनन्त गोबी रेगिस्तान को पार करके लाओये मंदिर के पास स्थित सीमा चौकी पर पहुंचा।
इस सीमा चौकी के नजदीक नरकटों से भरा एक विशाल तालाब है। चीन मंगोल गणराज्य की सीमा पर खड़े सीमा स्तंभ नम्बर 142 द्वारा यह तालाब दो भागों में बंटा हुआ है। यहां हमने देखा कि नरकटों के फूल हवा में क्षूम रहे हैं और हरे-भरे नरकटों के घने झुरमुट में सीमा स्तंभ नम्बर 142 छिपा हुआ है। सुबह जब हम नरकटों के तालाब के किनारे टहलने गये तो वहां हमें सीमा स्तंभ से 15 मीटर की दूरी पर एक छोटी सी झील नजर आई और झील के तट पर कुछ सीमा रक्षक कांटे से मछलियों का शिकार कर रहे थे। उनसे मालूम हुआ कि यह झील सीमा रक्षकों ने खुद ही खोदी है। चूंकि इस झील के तल में चश्मा है, इसलिए झील का पानी पूरे साल नहीं सूखता।
सीमा रक्षकों ने बताया कि इस राष्ट्रीय सीमा रेखा पर तरह-तरह की प्राकृतिक स्थितियां मौजूद हैं और उनमें ही हमें रहना होता है। हमारे लिए एकमात्र रास्ता उन प्राकृतिक स्थितियों के अनुकूल रहना और उनमें अपने रहने की स्थिति को सुधारना है।
सीमा चौकी के नेता ने मुझे बतायाः"सीमा रक्षकों ने इस झील का नाम'इडंशिन' रखा। झील का पानी खारा है और पीने के लायक नहीं है। मगर झील में हमने 5000 नन्ही मछलियां छोड़ी हैं। कहने की जरूरत नहीं कि पानी से लबालब भरी इस झील ने गोबी रेगिस्तान की रूखी जिन्दगी में काफी रंग लाया है।"