पेइचिंग में स्थित चीन के ऐतिहासिक अजायबघर में मिडं राजवंश(1368-1644) कालीन "पीली नदी व महानहर" शीर्षक एक लम्बा स्कॉल प्रदर्शित है। वैसे तो चित्र संकेतात्मक है, परन्तु दोनों बहती जलधाराओं को गहरी रंगीन रेखाओं में चित्रित किया गया है। पीली नदी की उमड़ती-घुमड़ती पीली धारा समुद्र की ओर बहती चली जा रही है, जबकि महानहर की ओर मन्द-मन्द बहती नीली धारा चीन के दक्षिण व उत्तरी हाडंचओ और पेइचिंग, इन दो प्राचीन शहरों से जुड़ी हुई है। अतीत में पूरे महानहर में जहाजरानी होती थी और इस के जरिए दक्षिण चीन से अनाज व विभिन्न स्थलों के उपहार सम्राट के लिए पेइचिडं भेजे जाते थे। 1855 में उत्तर-पूर्वी हनान प्रांत के थुडंवाश्याडं नामक स्थान में बाढ़ के कारण पीली नदी का तट टूट पड़ा, बाढ़ का पानी शानतुडं प्रांत के लीचन से होता हुआ समुद्र में गिरा और इस खौफनाक बाढ़ के पानी से समूचे शानतुडं प्रांत में महानहर के तमान तट टूट गए तथा जल-मार्ग नष्ट हो गए। आज दक्षिण च्याडंसू प्रांत की सीमा में तथा उत्तरी शानतुडं प्रान्त की सीमा में महानहर के कुछ भागों में नौका-वाहन होता है। कुछ भागों में जल-मार्ग अनरुद्ध हो गए हैं तथा कुछ भागों ने तो स्थलीय भूमि का रूप ले लिया है। परन्तु पिछले हजारों वर्षों में प्राचीन संस्कृतियों के अवशेष अब भी महानहर के दोनों तटों पर देखे जा सकते हैं।
बाढ़ों पर विजय पाने वाले वीर
दन्तकथा में यह वर्णित है कि 4000 वर्ष पहले चीन की विशाल भूमि में अक्सर बाढ़ के प्रकोप से आम जनता मुसीबत के कोल्हू में पिसा करती थी। चीन के दक्षिण पूर्वी इलाके का एक नेता था "ता य्वी", जिस का मुंह सूर्य की तपन से काला हो चला था, मगर शरीर हृष्ट-पुष्ट था, वह कभी बेड़े पर चढ़कर दलदली भूमि पार करता, तो कभी लोगों को लेकर कांटेदार जूते पहने पर्वतों पर चढ़कर भू-पर्यवेक्षण करता और नदी नालों से बाढ़ के पानी की निकासी करता। वह बड़ा बुद्धिमान, मेहनती, ईमानदार और नेकदिल आदमी था। वह अपना घरबार छोड़कर निरंतर 13 वर्षों तक बाढ़ के खिलाफ संघर्ष करता रहा और तीन बार अपने घर के दरवाजे से गुजरने के बावजूद घरवालों से नहीं मिल पाया। उस ने छाडंच्याडं नदी, ह्वाएहो नदी, पीली नदी और चीश्वेइ नदी का सुधार किया, अनेक नदी-मार्गों को खोदा, नहर नालों का निर्माण किया। वह बाढ़ पर विजय पाने वाला एक ऐसा वीर पुरुष था, जिस ने चीन में सब से पहले नहर का निर्माण किया था।