इसी वक्त एक पहाड़ी चोटी के दरार में से अचानक लाल रंग के चश्मे से गर्म पानी का फव्वारा फुट पड़ा। पानी से भाप उठ रही थी, और सुगंधित था। हुहांगती के गुरू फुछ्योकुंग ने हुहांगती को लाल रंग के चश्मे में नहाने के लिए कहा। वह चश्मे में लगातार सातो दिन-रात उसमें डूबा रहा और उसकी बुढ़ी त्वचा पानी के बहाव के साथ चला गया। उसके शरीर पर एक नई खाल आ गयी। देखने में अब वह बेहद ज़वान और तरोताजा लगने लगा। उसमें नव-जीवन का संचार आ गया और वह मौत से मुक्त होने वाला देवता बन गया। चुंकि यीशान हुहांगती को संजीवनी दवा देने वाला स्थान था, इसलिए उसका नाम भी बदल कर हुहांगशान हो गया।
हुहांगशान पर्वत में एक अत्यन्त मशहूर दर्शनीय स्थल है, जहां गहरी घाटी में एक गगनचुंबी पर्वत चोटी सीधी खड़ी नजर आती है। पर्वत चोटी का सीधा खड़ा भाग गोलाकार और पतला लम्बा सीधा होता है, देखने में वह कलम जैसा लगता है। चोटी का सबसे उपरी अंग सुपारी-सा लगता है। पूरी पर्वत चोटी परम्परगत चीनी ब्रश वाला कलम सरीखा मालूम होती है। इस चोटी पर एक प्राचीन देवदार पेड़ खड़ा है। दूर से देखने में लगता है मानो एक विराट कलम पर एक फूल खिला हो। इसलिए इस पर्वत चोटी का नाम कलम का पुष्प पड़ा।
कलम का पुष्प पर्वत के बारे में एक रुचिकर लोक कथा प्रचलित है। कहते है कि चीन के थांग राजकाल के महान कवि ली पाई ने एक बार रात में सपने में देखा कि वह हवा के एक झोंके के साथ समुद्र में खड़े एक देव पहाड़ पर आ पहुंचा है, और समुद्री पहाड़ बादलों के धुंध में झांक रहा है। पहाड़ पर फूल-पौधें खिला हुए है। कुदरती सुमन से मोहित हो कर काव्य की सोच में जब ली पाई डूबा कि इसी क्षण में एक विराट ब्रुश का कलम समुद्री जल राशि में से निकल कर दर्जनों गज लम्बा सीधा खड़ा हो गया, जैसा एक पत्थर का डंडा सीधा खड़ा हुआ हो। ली पाई ने सोचा कि काश, मैं इसी प्रकार के एक विराट कलम का स्वामी बन जाऊ, तो मैं विशाल धरती को स्याही पात्र बनाऊं, और समुद्र के जल को स्याही बना लू और नीले आकाश को कागज के रूप में इस्तेमाल करूं और कुदरत के सभी सौंदर्यों को काव्य में बदल दूं।