ताओ धर्म चीन का अपना धर्म है। इसके विकास के प्रारंभिक काल में संजीवनी परम्परा के अनुसार संजीवन दवा बनाने की निंरतर कोशिश की जाती थी। संजीवन दवा बनाने के लिए एक शांत और सुन्दर पहाड़ी क्षेत्र का होना आवश्यक था। जीवन शक्ति से ओतप्रोत स्थल में दवा बनाया जा सकता था, इसलिए हुहांगती अपने दोनों गुरू के साथ ऐसा रमणिक स्थान तलाशने के लिए निकल पड़े।
उन्होंने अनेक पहाड़ों और नदियों को पार कर देश के हर कोने को छान मारा। अंत में वे मध्य दक्षिण चीन के यीशान पहाड़ पर आ पहुंचे। उन्होंने देखा कि इस पहाड़ पर बहुत-सी ऊंची ऊंची पर्वत चोटियां हैं, मानो आकाश से बातें करती हो, पहाड़ी चोटियों के बीच सफेद बादल रेशमी कपड़े की भांति तिर रहा है, पहाड़ी घाटियां गहरी और सीधी है, पहाड़ी वादियों में कोहरा फैल रहा है। इस प्रकार के प्राकृतिक सौंदर्य से हुहांगती एकदम मुग्धमोहित हो गया और तीनों लोगों ने इस जगह को संजीवन दवा बनाने वाला वांछित स्थान मान लिया।
वे यीशान में रह कर रोज लकड़ी काटने, जड़ी-बूटी तोड़ने और खनिज खोजने में जुटे रहे और संजीवनी देने वाली दवा बनाने की कोशिश करते रहे। कहा जाता था कि संजीवन दवा बनाने में 9 बार उसे तेज आंच से तापने की आवश्यकता थी। यह एक अत्यन्त कठोर और लम्बा समय का काम था। असाधारण कठिन काम के सामने भी हुहांगती का संकल्प कभी नहीं हिला, और लगातार 480 साल के अथक प्रयास के बाद चमकदार स्वर्णिम दवा गोली आखिरकार तैयार हो गई। एक गोली के सेवन से हुहांगती को अनुभव हुआ कि उसका शरीर अद्भुत हल्का हो गया और पक्षी की भांति हवा में घूमने फिरने में सक्षम हुआ। हुहांगती के सफेद बाल पुनः काले हो गये। लेकिन वृद्ध होने के कारण जो त्वचा पर झुर्रियां पड़ी थी, वह ठीक नहीं हूई।