ओह मॉय गॉड ! मैं ठंडी-ठंडी आंहें भरने लगी और सोचने लगी कि इतने सारे लोगों के बीच कैसे खाना बनाऊँगी। अभी दिमाग में यह सब बातें घूम रही थीं कि अचानक लोगों की भीड़ ने हमें घेर लिया और हमारा स्वागत करने लगे। उन्होंने हमें पहनने के लिए बावर्ची की शर्ट, एप्रन और टोपियाँ दीं। रसोइए की वर्दी पहन मैं खुद को मास्टर शेफ समझने लगी थी। दिखने भी लगी थी(तस्वीर देखें)। अब पूरी तरह एहसास हो गया था कि बेटा, हेमा कृपलानी, जितना सोच रही थी कि खेल-खेल में खाना बन जाएगा, यह उतना आसान नहीं। उसके बाद मीडिया के साथ इंटरव्यू का सिलसिला शुरु हुआ, स्थानीय टी.वी चैनल वालों ने एक-एक कर हम सब से बात की कई तरह के सवाल पूछे, फोटो खींचे। प्रदर्शनी हॉल में मौजूद सब लोगों की निगाहें हम पर थी। शेफ की तरह तैयार खड़ी मैं और मेरे साथ एक-एक कर इतने सारे लोग फोटो निकालने लगे कि एक पल के लिए मुझे लगने लगा कि मैं संजीव कपूर से भी ज्यादा मश्हूर मास्टर शेफ हूँ। शायद खुशफहमी इसे ही कहते हैं।
फोटो सेशन और इंटरव्यू के बाद अब बारी थी अपने हुनर का प्रदर्शन करने की। हम अपने-अपने वर्किंग स्टेशन पर गए जो एक खुले किचन की तरह था। हमारे सामने एक गैस चूल्हा था और उस पर रखा था कड़ाही का डैडी जिसे चाइनीज वोक कहा जाता है। एक तरह की बड़ी देग जो हमारे यहाँ हलवाइयों या मंदिर-गुरुद्वारों के लंगर में प्रयोग होती हैं। हमें उसका किस प्रकार प्रयोग करना है, यह सीखाया गया। और अब आपका 90 मिनट का समय शुरु होता है.... अब। यह सुनते ही मैंने फटाफट पालक और हरा प्याज धोया और ढूँढने लगी चाकू जो मेरे पास नहीं था।