चंद्रिमाः अब हम रुख करते हैं अपने अगले श्रोता का। इनका नाम है अफ़नान करीम मलिक और इन्होंने हमें पत्र लिखा है जामपुर, पंजाब पाकिस्तान से। अफ़नान जी लिखते हैं कि उन्हें सीआरआई के हिन्दी कार्यक्रम बहुत अच्छे लगते हैं। साथ ही ये बताना भी नहीं भूलते कि ये हमारे नए श्रोता हैं। अफ़नान जी ने हमें पत्र तो अंग्रेज़ी में लिखा है, लेकिन ये अपने पत्र में लिखते हैं कि इन्हें हिन्दी के कार्यक्रम तो बहुत अच्छे लगते हैं, पर हिन्दी लिखने और पढ़ने में इन्हें बहुत दिक्कत आती है। साथ ही ये भी लिखते हैं कि अगली बार ये हमें हिन्दी में पत्र लिखेंगे।
पंकजः अफ़नान जी ये तो बहुत अच्छी बात है कि आप हिन्दी भाषा लिखना और पढ़ना सीखना चाहते हैं। हिन्दी में एक पुरानी कहावत है – जहां चाह वहां राह। यानी अगर आपने ठान लिया है कि आप हिन्दी भाषा सीखेंगे, तो आपके रास्ते आगे के लिये खुलते चले जाएंगे। और जल्दी ही आप अच्छी हिन्दी सीख जाएंगे। अफनान जी ने हमसे हिन्दी पत्रिका श्रोता वाटिका की फरमाईश भी की है। तो अफनान जी आप चिंता मत कजिये आपके पते पर हम जल्दी ही हमारी पत्रिका श्रोता वाटिका अवश्य भेजेंगे।
चंद्रिमाः हमारे अगले श्रोता हैं अरुण कुमार जी इन्होंने हमें पत्र लिखा है गोदरीपाड़ा, जिला कोरिआ छत्तीसगढ़ से। इन्होंने तिब्बत ज्ञान प्रतियोगिता में हिस्सा भी लिया है और ये तिब्बत के बारे में लिखते हैं कि चीन ने तिब्बत की काया बदल दी है। 1984 से पहले राजधानी ल्हासा नगरी अंधेरे में डूबी रहती थी लेकिन आज तिब्बत प्रांत में 28 करोड़ युआन की लागत से चीन ने देश की सबसे बड़ी पन बिजली परियोजना खड़ी कर दी है, जिससे एक लाख दो हज़ार किलोवाट बिजली का उत्पादन होता है, और कई इलाकों में यहां से बिजली भेजी जाती है।
पंकजः उन्होंने आगे लिखा है कि इसके अलावा चीन ने तिब्बत के विकास में अहम भूमिका निभाई है, जिससे आज तिब्बत प्रगति की राह पर आगे निकल पड़ा है। अरुण जी लिखते हैं कि मैं पहले तिब्बत के बारे में कुछ भी नहीं जानता था, लेकिन जब से मैंने सीआरआई के कार्यक्रम सुनना शुरु किया है, तब से तिब्बत के बारे में मेरी जानकारी बहुत अच्छी हो गयी है। अरुण जी हम हमेशा अपने श्रोताओं को जानकारी देने के साथ साथ उनका मनोरंजन भी करते हैं या आप इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि जानकारी और मनोरंजन दोनों साथ साथ परोसते हैं। जिससे ज्यादा से ज्यादा श्रोता वर्ग हमारे साथ जुड़ सके।
चंद्रिमाः पंकज जी, हाल के कुछ दिनों में हमारे पास बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल से बहुत सारे पत्र आने लगे हैं। लगता है कि हमारे कार्यक्रम भारत के बाहर भी लोकप्रिय होते जा रहे हैं। जिससे हमारे प्यारे श्रोता हमें रोज़ाना ढेरों पत्र लिखते हैं।
पंकजः जी हां, पत्रों की संख्या असीमित है, लेकिन कार्यक्रम का समय तो सीमित है। हालांकि न चाहे, पर अपने श्रोताओं को नमस्कार कहने का वक्त फिर आया है। अब पंकज और चंद्रिमा को आज्ञा दें, नमस्कार।
चंद्रिमाः अगले हफ्ते हम फिर मिलेंगे, नमस्कार।