पंकजः धन्यवाद, सुरेश अग्रवाल जी, आपने मेरी प्रशंसा की, और आप का प्रोत्साहन मेरे लिये हमेशा आगे बढ़ने की एक शक्ति होगी। साथ ही सुरेश जी ने अपने पत्र में "आपकी आवाज़ ऑन लाइन" कार्यक्रम की चर्चा भी की। उन्होंने यह लिखा है कि मंडोला, बारा, राजस्थान के श्रोता भाई नरेन्द्र जांगीर से पंकज श्रीवास्तव द्वारा ली गई भेंट वार्ता इसलिए बहुत अच्छी लगी कि उस क्षेत्र के बारे में जांगीर जी से ज़्यादा जानकारी स्वयं पंकज जी रखते हैं। बहरहाल, बातचीत सुनने के बाद चित्तौड़गढ़ का क़िला और वहां स्थित अढाई सौ फुट ऊंचा विजय-स्तम्भ देखने की उत्कट इच्छा जागृत हो गई तथा वहां की मेवा-मिस्री की बात सुन कर तो मुंह में पानी भर आया। अब तो मुझे इन चीज़ों के लिए जांगीर जी से मित्रता करनी ही पड़ेगी। धन्यवाद, इस इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए। सुरेश जी, धन्यवाद आप को भी।
चंद्रिमाः पंकज जी, आज का कार्यक्रम प्रसारित करके हमें ऐसा लगता है कि हमारे श्रोता आप का हार्दिक स्वागत करने के साथ साथ मेरे पुराने साथी विकास जी को अभी तक बहुत याद करते हैं। तो कार्यक्रम समाप्त होने से पहले हम खास तौर पर विकास जी के लिये एक गीत पेश करेंगे, गीत के बोल हैं दिल को छोड़कर उड़ान दो। इस में गायक ने ऐसा गाया है कि अंत में बिदा लेने का दिन आ गया। हम अपने अपने संसार में प्रवेश करने चले गये। कोई व्यक्ति दिल में आप की जगह नहीं ले सका, और हमारे एक साथ बिताने वाला समय नहीं मिटेगा। रास्ते पर हम एक दूसरे को समर्थन देते थे, और पसीना व आंसू द्वारा सफलता प्राप्त करते थे। हमें सभी खुशी व गौरव के बदले एक वचन लेना चाहिए कि हर रात को सपनों में मिलेंगे। दिल को छोड़कर उड़ान दो, साहस के साथ अपने लक्ष्य के पीछे दौड़ो। दिल को छोड़कर उड़ान दो, साहस के साथ आंसू बहने के बिना नमस्ते कहो।
पंकजः श्रोता दोस्तो, आप शायद नहीं जानते कि हालांकि विकास जी अब सी.आर.आई. में काम नहीं करते, पर वे भी हमारे कार्यक्रम का बड़ा ध्यान देते हैं, और हर हफ्ते वे इन्टरनेट पर आप का पत्र मिला कार्यक्रम सुनते हैं। हमें विश्वास है कि आज का कार्यक्रम सुनकर विकास जी ज़रूर बहुत प्रभावित होंगे। और यहां हमें आशा है कि उनकी पढ़ाई का जीवन सुचारू रुप से चलता रहेगा, और उन का भविष्य उज्जवल होगा।
चंद्रिमाः इस शुभकामना के साथ ही आज का कार्यक्रम समाप्त होता है। अब चंद्रिमा व पंकज को आज्ञा दें, नमस्कार।
पंकजः नमस्कार।