चंद्रिमाः पश्चिम चम्पारण, बिहार के मो.तनवीर आलम ने हमें भेजे पत्र में यह लिखा है कि मैं आप के प्रसारण का नियमित श्रोता था। परन्तु कुछ समय से यहां पश्चिम चम्पारण स्थित सिकटा प्रखंड में पंचायत रोजगार सेवक के पद पर कार्यरत हूं। मेरा गृह जिला मधुबनी है। अब मैं पुनः हिन्दी सेवा के कार्यक्रम को नियमित रुप से सुनने का संकल्प लिया हूं। तो मो.तनवीर जी, आप को फिर हमारे कार्यक्रम में फिर से शामिल होने के लिए बहुत-बहुत स्वागत है। और आशा है आप नियमित रूप से हिन्दी कार्यक्रम सुनने के साथ साथ बारी बारी से हमें पत्र भी भेज सकेंगे।
विकासः मुबारकपुर, आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश के पैगाम रेडियो लिस्नर्स कल्ब के अध्यक्ष दिलशाद हुसेन ने अपने पत्र में हमें यह सूचना दी कि दिनांक 20 फ़रवरी वर्ष 2011 को ऊंची तकिया मुबारकपुर आज़मगढ़ पैगाम रेडियो लिस्नर्स कल्ब में विकलांग जागरूकता गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस में शासन प्रशासन द्वारा विकलांगो को दी जाने वाली सहायता पर चर्चा की गई। गोष्ठी को संबोधित करते हुए पैगाम रेडियो लिस्नर्स कल्ब के अध्यक्ष दिलशाद हुसैन ने कहा कि सब से बड़ा धर्म गरीबों की सेवा करना है। विकलांग भी एक इंसान है, उन्हें कभी हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। गरीब को दी जाने वाली सहायता कभी बेकार नहीं जाती है।
चंद्रिमाः दिलशाद हुसैन जी, हम आप की बातों से बिल्कुल सहमत हैं। अगर एक समाज में केवल कुछ लोग अमीर हैं, और ज्यादातर आम लोग व विकलांग लोग गरीबी से जूझ रहे हैं। तो यह एक सुखमय व सामंजस्यपूर्ण समाज नहीं है। हमें गरीब लोगों को अपनी यथासंभव सहायता देनी चाहिये, खास तौर पर उन विकलांग लोगों के लिये। हम आप की कल्ब द्वारा आयोजित ऐसी सार्थक गतिविधियों का पूरा समर्थन देते हैं, और आज आप लोगों के लिये एक मधुर गीत भी भेंट करेंगे।
विकासः वास्तव में यह गीत भी विकलांग लोगों से संबंधित है। गीत के बोल हैं तुम मेरी आंखें हो। गायक श्याओ ह्वांग छी ने ऐसा गाया है कि अगर मैं देख सकता हूं, तो आसानी से दिन रात समझ सकता हूं। और भीड़-भाड़ में जल्द ही आप का हाथ पकड़ सकता हूं। अगर मैं देख सकता हूं, तो गाड़ी चलाकर आप के साथ इधर-उधर घूम सकता हूं, और पीछे से अचानक आप को गोद में ले सकता हूं। अगर मैं देख सकता हूं, तो शायद जिन्दगी बिल्कुल अलग हो जाएगी। आंखों के सामने वह काला तो काला नहीं है, और तुम्हारे मुंह में कहने वाला वह सफ़ेद तो कौन सा सफ़ेद है?मैंने तुम्हें देखना चाहा, लेकिन कुछ भी नहीं देख पाया। शायद भगवान ने मेरी आंखों के सामने एक पर्दा डाला, और इसे खोलना भूल गया। तुम मेरी आंखें हो, जो मुझ लेकर मौसम के बदलने को महसूस करती हैं। तुम मेरी आंखें हो, जो मुझ लेकर भीड़ भाड़ में गुजरती हैं। तुम मेरी आंखें हो, जो मुझ लेकर पुस्तकों के सागर में तैरती हैं। क्योंकि तुम मेरी आंखें हो, तुम से मैं इस विश्व को देख पाता हूं।