समुद्र तल से 4300 मीटर ऊंचाई पर स्थित छिंगहाई प्रांत के युशू तिब्बती प्रिफेक्चर में लोंगपाओ राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण केंद्र की स्थापना वर्ष 1985 में हुई थी, जिसका क्षेत्रफल दस हज़ार हेक्टेयर है। यह छिंगहाई प्रांतीय सरकार द्वारा प्रांत में स्थापित पहला राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण केंद्र है, जिसे सानच्यांग युआन संरक्षण केंद्र का एक छोटा रूप माना जाता है। इस पठारीय घास-मैदान का एक मधुर नाम है--"काली गर्दन वाले क्रेन का जन्मस्थान"।
तिब्बती युवा पासोंग छाईरन लोंगपाओ संरक्षण केंद्र में आर्द्रभूमि और काली गर्दन वाले क्रेन की रक्षा करने वाला स्वयं सेवक है, जिसका जन्म इस स्थल में हुआ और इसी जगह उसपर परवान चढ़ा। मूल्यवान पठारीय आर्द्रभूमि को जंगली जानवरों को सौंपने के लिए लोंगपाओ क्षेत्र के चरवाहों को यहां से स्थानांतरित किया गया था। लेकिन पासोंग छाईरन को लगता है कि घास-मैदान में उसके बहुत से संबंधी फिर भी ठहरते हैं। उसे उनकी देखभाल करने की आवश्यकता है। जंगली जानवरों की देखभाल करते-करते 17 साल बीत चुके हैं। इन वर्षों में पासोंग छाईरन ने एक भी पैसा नहीं कमाया। उसके और जंगली जानवरों के बीच घनिष्ठ संबंध कायम हो चुका है। वे स्थानीय पारिस्थितिक बहाली का साक्षी भी बन गया है।
सुबह सूर्योदय के समय पासोंग छाईरन खाद्य पदार्थ और डायरी लिए एक दिन की गश्ति यात्रा के लिए घर से बाहर निकला। अपने पूरे दिन के काम को बताते हुए उसने कहा:
"सुबह 7 या 8 बजे मैं रवाना होता हूं और शाम को 6 बजे वापस लौटता हूं। दिन में अक्सर मैं पैदल 7 या 8 घंटे का रास्ता तय करता हूं। यहां तक कि कभी-कभी 10 घंटे का रास्ता भी तय करना पड़ता है। आम तौर पर मैं 7 से 15 दिनों में एक बार गश्त लगाकर निरीक्षण दौरा करता हूं। गश्त लगाने के वक्त मुझे इस संरक्षण केंद्र से दूसरे संरक्षण केंद्र तक जाना पड़ता है। सबसे लम्बी दूरी 70 से 80 किलोमीटर की है, यही नहीं, रास्ते की स्थिति भी खराब है। हमें पैदल चलना पड़ता है। हर वर्ष अप्रैल के अंत और मई में मैं आर्द्रभूमि के मध्य में स्थित काली गर्दन वाले क्रेन के घोंसले को देखने जाता हूँ। वहां जाने का रास्ता सिर्फ़ हम जैसे गश्त लगाने वालों को मालूम है। अगर किसी व्यक्ति ने ग़लत रास्ता चुना, तो वो दलदल में फंस सकता है।"
पासोंग छाईरन के अनुसार गश्त लगाने वाले व्यक्तियों, पर्यावरण संरक्षण करने वाले स्वयं सेवकों और जंगली जानवरों को यह रास्ते मालूम हैं। पिछले 17 वर्षों में पासोंग छाईरन इस रास्ते पर चलता आ रहा है और उसे पता भी नहीं चला कि वो कितनी दूर चली गई।
लोंगपाओ आर्द्रभूमि में बसे जंगली जानवरों की चर्चा में पासोंग छाईरन बातचीत करना रोकता नहीं। यहां विशेष निवासी काली गर्दन वाले क्रेन के प्रति उसे गर्व है। पासोंग छाईरन ने कहा:
"हमारे यहां काली गर्दन वाले क्रेनों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है। काली गर्दन वाले क्रेन देश में प्राथमिक स्तर पर संरक्षण किए जाने वाले जंगली पक्षी हैं, वह हमारे छिंगहाई प्रांतीय पक्षी के रूप में सुप्रसिद्ध हैं। हर वर्ष अप्रैल के अंत में घास-मैदान में नई घास उगती है, इस समय काली गर्दन वाले क्रेन दक्षिण चीन से हमारे संरक्षण केंद्र तक आ पहुंचते हैं। अक्तूबर के शुरू में यहां घास पीली होने और झीलों का पानी बर्फ़ बनने लगता है तो ये पक्षी यहां से दक्षिण चीन की तरफ़ उड़कर चले जाते हैं। हर वर्ष इन पक्षियों के दक्षिण की ओर जाने के बाद मुझे बहुत अकेलापन महसूस होता है, फिर अप्रैल में उनके वापस लौटने से मेरा मन प्रसन्न हो जाता है। वर्ष 1985 में लोंगपाओ संरक्षण केंद्र की स्थापना के शुरुआत में यहां पर सिर्फ़ 22 काली गर्दन वाले क्रेन थे। लेकिन अब यहां की पर्यावरण स्थिति धीरे-धीरे अच्छी होने लगी है। संरक्षण केंद्र में कुल 216 काली गर्दन वाले क्रेन हैं।"
तिब्बती युवा पासोंग छाईरन ने कहा कि पक्षी फ्लू का विरोध करना उसके कार्यों में से एक है। वह कभी-कभार काली गर्दन वाले क्रेन की रोग और मृत्यु की स्थिति पर ध्यान देता है। लम्बे समय में इन पक्षियों के साथ रहने से वह काली गर्दन वाले क्रेन को अपना रिश्तेदार मानते हैं। उसे कभी चिंता नहीं हुई कि इस प्रकार के प्यारे पक्षियों से संक्रमित रोग उन्हें भी हो सकता है।
पासोंग छाईरन ने कहा कि 2 सौ से अधिक काली गर्दन वाले क्रेनों में से एक विशेष सदस्य उसे कभी नहीं भूल पाता। उसने कहा:
"स्वयं सेवक बनने के दौरान मेरे पास सबसे अविस्मणीय और सबसे दुखद बात पता चली। वर्ष 2007 के जून माह में, एक दिन सुबह एक काली गर्दन वाले क्रेन को स्थानीय जंगली कुत्ते के काटने से उसका एक पंख घायल हो गया। हम इस पक्षी को बचाकर संरक्षण केंद्र के प्रबंधन स्टेशन में ले आए और तीन वर्षों तक उसकी देखभाल की। हर बार गश्त लगाने के बाद हम इस पक्षी के लिए छोटी मछली, केक के टुकड़े जैसे खाद्य पदार्थ लेकर स्टेशन वापस लौटते थे। हमारी वापसी के स्वागत के लिए यह पक्षी जल्द ही पास आता था। हमारे बीच घनिष्ठ संबंध बना और अब हम उसे अपना रिस्तेदार मानते हैं। इस पक्षी को'दक्षिण'का नाम दिया गया है, हम चाहते हैं कि वह शीघ्र ही ठीक होकर दक्षिण तक वापस उड़ जाए। लेकिन वर्ष 2010 में 14 अप्रैल को यूशु प्रिफेक्चर में जबरदस्त भूकंप आया। संरक्षण स्टेशन की बाहीर दीवार ढह गई और इस हादसे में दुर्भाग्य से'दक्षिण'की मृत्यु हो गई। हमें बहुत दुख हुआ और संरक्षण स्टेशन के पास ही उसे दफ़नाया गया। मुझे आज भी 'दक्षिण'की याद सताती है।"
वर्ष 2007 में इन्टरनेट पर एक विडियो प्रोग्राम चीन में बहुत लोकप्रिय हुआ था, जिसमें काली गर्दन वाले क्रेन एक तिब्बती युवा की मधुर सीटी के साथ नाच रहा है। यह तिब्बती युवा पासोंग छाईरन और काली गर्दन वाला क्रेन"दक्षिण"ही है। लोंगपाओ संरक्षण केंद्र की सैर करने वाले एक पर्यटक ने संयोग से यह विडियो बनाकर इन्टरनेट पर अपलोड किया। चीनी नेटिजनों का कहना है कि यह मानव जाति और पक्षी के बीच सामंजस्यपूर्ण रूप से सह-अस्तित्व की आदर्श मिसाल है। यही विडियो पासोंग छाईरन और पक्षी"दक्षिण"के साथ रहने का एकमात्र यादगार सामग्री बन गया।
इस वर्ष 35 वर्षीय पासोंग छारन ने कहा कि लम्बे समय से उसकी एक अभिलाषा है। उसने कहा:
"मुझे आशा है कि स्वयं सेवक का काम जारी रखूंगा। अंत में मैं 216 काली गर्दन वाले एक-एक क्रेन को पहचान कर सभी को नाम दे सकूंगा। उदाहरण के तौर पर नर पक्षी को सोनान चाशी का नाम दूंगा, तिब्बती भाषा में चाशी का मतलब शुभ है। मादा पक्षी को चाशी लामाओ कहुंगा। तिब्बती भाषा में लामाओ का अर्थ देवी है। अगर हरएक काली गर्दन वाले क्रेन को नाम दिया गया, तो मुझे सफलता मिलेगी। मेरा विचार है कि इस प्रकार के कार्य से काली गर्दन वाले क्रेन की जांच में बहुत मदद मिलेगी। अगर ऐसा हुआ, तो मैं संतुष्ट होउंगा।"
तिब्बती युवा पासोंग छाईरन ने कहा कि वर्तमान में उसने अधिकांश काली गर्दन वाले क्रेनों को पहचान लिया है। इस प्रकार के पक्षी बहुत बुद्धिमान हैं। सर्दियों में वे दक्षिण में अपने घर वापस लौटते हैं। पासोंग छाईरन को अपना रिश्तेदार मानते हुए अगले वर्ष वसंत में जरूर लोंगपाओ संरक्षण केंद्र वापस आते हैं। पासोंग छाईरन ने कहा कि हाल के वर्षों में लोंगपाओ संरक्षण केंद्र में थलीय क्षेत्रफल में अधिक विस्तार हो रहा है। पक्षियों की किस्में लगातार बढ़ रही हैं। भविष्य में पर्यावरण स्थिति साल दर साल अच्छी होने के साथ-साथ जंगली जानवरों का जीवन जरूर और बेहतर होगा।
पासोंग छाईरन को स्वयं सेवक बनना पसंद है। उसने कहा कि वह इस प्रकार के कार्य को लेकर अग्रणी रहेगा।