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सानच्यांग युआन क्षेत्र में पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए मानव जाति का प्रयास
2013-09-11 17:43:58

पशुपालन क्षेत्र से स्थानांतरण हुए चरवाहे

प्राकृतिक संरक्षण केंद्र में कार्यरत कर्मचारी

छिंगहाई प्रांत में समुद्र तल से सबसे ऊंचे स्थान पर स्थिति सबसे कम जनसंख्या वाली मात्वो कांउटी चीनी राष्ट्र की मां समान नदी पीली नदी का उद्गम स्थल है। तिब्बती भाषा में"मात्वो"का अर्थ"पीली नदी का स्रोत" है। तिब्बती बहुल क्षेत्र में तिब्बती बंधु इस स्थान को"स्वर्ग"कहते हैं। इतिहास में मात्वो क्षेत्र बहुत उपजाऊ और सुन्दर बताया जाता है। भेड़ों और गायों के झुंड से ये जगह समृद्ध थी। 8वीं शताब्दी के शुरूआत में तत्कालीन चीन के थांग राजवंश में सुप्रसिद्ध कवि ली पाई ने मात्वो क्षेत्र के प्राकृतिक दृश्य का वर्णन करते हुए"पीली नदी का पानी है, स्वर्ग से आता"वाली कविता रची थी। उपजाऊ भूमि, सुन्दर प्राकृतिक दृश्य, बेशुमार भेड़ें और गायें, हरा-भरा पर्वत, नीला आसमान और सफेद बादल...... यह दृश्य भविष्य में सानच्यांग युआन क्षेत्र में पारिस्थितिकी संरक्षण का शानदार लक्ष्य होगा।

मात्वो कांउटी में सानच्यांग युआन कार्यालय के प्रधान ली तावेई ने पारिस्थितिकी संरक्षण कार्य में काम करते हुए 27 वर्ष बिता चुके हैं। उनके पिताजी भीतरी क्षेत्र के हनान प्रांत से सहायता के लिए पठार पर स्थित छिंगहाई प्रांत में आए और जीवन भर यहां काम करते रहे। विश्वविद्यलय से स्नातक करने के बाद ली तावेई रोज़गार के लिए जन्मस्थान हनान वापस लौटना चाहते थे। वे कठोर स्थिति वाले छिंगहाई पठार से दूर रहना चाहते थे। लेकिन पिताजी ने ली तावेई से यहां ठहरने की बात कही और उन्हें समझाया। समुद्र तल से बहुत ऊंचे स्थान पर स्थित पठार में लम्बे समय तक काम करने के कारण पिताजी की शारीरिक स्थिति उच्छी नहीं रही और उनका फेफड़े के रोग से देहांत हो गया। पिताजी से प्रभावित होकर ली तावेई ने अंत में सानच्यांग युआन में ठहरने का मन बनाया। इसकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:

"युवावस्था में मैं यहां से दूर रहना चाहता था। इस क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति बहुत कठिन है। समुद्र तल से अत्यंत ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां ऑक्सीजन कम है और जलवायु की स्थिति भी खराब है। पिताजी ने मुझे दूर जाने की मंजूरी नहीं दी। वे इस क्षेत्र में 32 वर्षों तक कार्यरत थे और इस भूमि के प्रति उनका अपार प्यार रहा है। मुझे याद है कि पिताजी ने मुझसे कहा था कि मैंने यहां जीवन भर काम किया है। तुम युवा हो, यहां ठहरो। बाबा के यहां आने के वक्त स्थिति अत्यंत कठोर थी, लेकिन अब स्थिति में कहीं सुधार हुआ है। पिताजी की बातें सुनकर मैंने यहां ठहरने का मन बनाया और आज तक भी यहां रह रहा हूं।"

ली तावेई पिताजी की ही तरह सानच्यांग युआन में पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए मेहनत से काम करते हैं। उन्होंने अपना नाम समझाते हुए कहा कि "ता"का अर्थ"बड़ा"और"वेई"का अर्थ"महान"है। कुल मिलाकर मेरा नाम"तावेई"का मतलब बहुत महान व्यक्ति होता है। लेकिन ली तावेई ने हंसते हुए कहा कि अपने नाम में बड़ा और महान वाला शब्द है। लेकिन वास्तव में मैं बहुत साधारण और छोटा काम कर रहा हूं।

पिछली शताब्दी के 80 के दशक से ही ली तावेई घास के मैदान के संरक्षण, पीली नदी के पानी के संरक्षण, चरागाह बंद कर फिर घास उगाने, किसानों और चरवाहों के स्थानांतरण आदि कार्यों की जिम्मेदारी उठाते हैं। वे अक्सर स्थानीय किसानों और चरवाहों से पशुपालन क्षेत्र से कस्बे तक स्थानांतरण को समझाते हैं। उनके अनुसार चरवाहों के आश्रय स्थलों में पर्यावरण का मुद्दा सामने आया है, चरागाह स्थल में वनस्तपियों में गिरावट आई है और घास-मैदान में रेतीलापन बढ़ने लगा है। इन सवालों के निपटारे के लिए किसानों और चरवाहों को यहां से हटाना पड़ता है। स्थानीय किसानों और चरवाहों की स्थानांतरण स्थिति की याद करते हुए ली तावेई ने कहा:

"उस समय स्थानीय किसान और चरवाहे बिलकुल भी यहां से हटना नहीं चाहते थे। क्योंकि वो यहां पर पीढ़ियों से रहते आए हैं। लेकिन घास-मैदान में घास की कमी होने की वजह से उन्हें पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए हटाना पड़ता था। ज्यादा लोग जन्मभूमि से विदाई लेते समय रोते थे। वे पीली नदी के उद्गम स्थल स्थित चालीन झील के पानी को केतली में और घास-मैदान की मिट्टी को थैली में रखकर जाते थे।"

आंकड़ों से पता चला है कि वर्तमान में सानच्यांग युआन क्षेत्र में करीब 100 पारिस्थितिक आप्रवासी निवास क्षेत्र स्थापित हुए हैं, जहां दस हज़ार परिवार के 50 हज़ार लोग रहते हैं। किसानों और चरवाहों के आंसू बेकार नहीं जाते। उनके विदा लेने से घास-मैदान के पर्यावरण में जरूर सुधार होगा।

छिंगहाई प्रांत की मात्वो कांउटी में सानच्यांग युआन कार्यालय के प्रधान ली तावेई के अनुसार चरागाह बंदकर पुनः घास उगाने वाली परियोजना के कार्यान्वय से सान च्यांगयुआ में जल संसाधन की बहाली में बहुत सुधार हुआ है। गर्व की बात यह है कि मात्वो कांउटी के इतिहास में"हज़ार झीलों"वाला चमत्कार एक बार फिर नज़र आया। अब मानव जाति और जंगली जानवरों के बीच ज्यादा से ज्यादा सामंजस्य बनने लगा है। उन्होंने कहा:

"इतिहास में मात्वो कांउटी का हज़ार झीलों वाला उपनाम था। लेकिन कई वर्षों से यहां पड़ने वाले लगातार सूखे की वजह से कुछ झीलों में पानी कम हुआ है। पारिस्तितिकी संरक्षण किए जाने के बाद हाल के वर्षों में हमारे यहां चालिन झील और अलिन झील में पानी बढ़ने लगा। पहले झील के तट पर मार्ग का निर्माण किया गया था, झील में पानी बढ़ने से पुराना मार्ग बिलकुल नहीं दिखाई देता था। अब यहां जंगली जानवरों की संख्या भी बढ़ गई है, राजमार्ग पर अक्सर तिब्बती नीलगाय, जंगली गधे, भेड़िये और रेतीली लोमड़ी जैसे जंगली जानवरों को देखा जा सकता है। गाड़ियों के हॉर्न से उन्हें डर नहीं लगता और वो यहां से भागते भी नहीं हैं।"


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