लांगमू मठ में पूजा करने आए अनुयायी
लांगमू मठ की स्थापना तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के आचार्य च्यात्सान सांगके द्वारा वर्ष 1748 में की गई थी। उसके बाद सब से शानदार काल में एक हज़ार से अधिक भिक्षु रहते थे। कई पीढ़ियों के निर्माण के चलते लांगमू मठ का लगातार विस्तार होता गया और इसका क्षेत्रफल बहुत विशाल है। मठ में कुल पांच बड़े बौद्ध शिक्षा संस्थान हैं। यहां 26 बुद्ध भवन, 19 बुद्ध महल और विभिन्न प्रकार वाली सामग्रियों से निर्मित 70 से अधिक छोटे बड़े बौद्ध पगोडा और स्तूप हैं और सौ से अधिक संघाराम भी हैं। मठ में 4 हज़ार से ज्यादा बौद्ध मूर्तियां सुरक्षित रखी गई हैं, जो स्वर्ण, रजत, कांस्य, कोरल जैसी सामग्रियों से अलग-अलग तौर पर चीन के भीतरी क्षेत्र, भारत और नेपाल जैसे स्थलों में बनाई जाती थी। इसके अलावा मठ में 800 से अधिक कसीदाकारी वाले बुद्ध चित्र, स्वर्ण और रजत रस से लिखे कांग्यूर और तेंग्यूर दो बौद्ध सूत्र और दस हज़ार से ज्यादा बौद्ध पुस्तकें भी सुरक्षित हैं।
संवाददाता और लांगमू मठ के भिक्षु के साथ
लांगमू मठ के चारों ओर पहाड़ है। पहाड़ों में हरे भरे पेड़, मठ का स्वर्ण-काष्ठ निर्माण और आसपास के नागरिकों के विभिन्न रंग वाली इमारतें साथ-साथ नज़र आती हैं। लांगमू मठ के नज़दीक टोपी पहने एक भिक्षु आकार वाला पहाड़ भी है। मानो वह चुपके से इस पवित्र स्थल की रक्षा कर रहा हो। लांगमू मठ क्षेत्र का प्राकृतिक दृश्य बहुत सुन्दर है और"पूर्व के लघु स्वीट्जरलैंड"के नाम से मशहूर है। लूछ्यु कांउटी के प्रसार विभाग के उप प्रधान छन छांगयुन ने परिचय देते हुए कहा:
"लांगमू मठ के चारों ओर का दृश्य अलग-अलग है। एक दिशा में मुख्य तौर पर तानश्या लैंडफ़ॉर्म है, जिसका रंग लाल है, जबकि दूसरी ओर कार्स्ट लैंडफ़ॉर्म है और इसका रंग सफेद। सूर्य की किरणों के उन्मुख वाली ओर पहाड़ पर साइप्रेस पेड़ उगे हुए हैं, जबकि सूर्य की किरणें के पीछली तरफ पहाड़ पर पाइन के पेड़ उगे हैं। इन दोनों दिशाओं के पेड़ों का रंग भी अलग-अलग है। सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें पहाड़ पर पड़ती हैं, तानश्या लैंडफ़ॉर्म वाले पहाड़ का रंग अत्यंत लाल हो जाता है।"