लांगमू मठ के भिक्षु
छन छांगयुन की कथन में तानश्या लैंडफ़ॉर्म, कार्स्ट लैंडफ़ॉर्म और साइप्रेस का पेड़ यहां मैं विस्तृत रूप से व्याख्या करूंगी। तानश्या लैंडफॉर्म .... चीनी भाषा में तान का मतलब लाल रंग होता है और श्या का मतलब है सूर्यास्त के समय आकाश का लाल रंग होना। तानश्या का पूरा शाब्दिक अर्थ सूर्यास्त के समय लाल रंग का क्षितिज है। तानश्या लैंडफॉर्म उस विशेष भौगोलिक स्थिति को कहते हैं जहां पर चट्टानें हज़ारों वर्षों में वर्षा और हवा के कारण लाल रंग की हो जाती हैं। कार्स्ट लैंडफॉर्म उस भूमि को कहते हैं जहां सतह और सतह के अंदर ढेर सारे गड्ढे और सुरंगें होती हैं ऐसे भूमि स्थल पर पानी सुरंगों के माध्यम से भूमि के अंदर बहता है और झरने के रूप में किसी दूसरे स्थान पर भूमि की सतह पर आता है। कई जगहों पर कार्स्ट लैंडफ़ॉर्म सफेद होते हैं क्योंकि भूमि के नीचे बहने वाला अम्लीय पानी भूमि में चूने का निर्माण करता है। साईप्रेस के पेड़---ऐसे पेड़ जो ध्रुवीय और ठंडे प्रदेशों में पाए जाते हैं और ये सदाबहार यानी पूरे वर्ष हरे भरे रहते हैं।
लांगमू मठ की पश्चिमी दिशा में एक पहाड़ है, जिसकी चट्टान पर एक हाथ रूप वाला बहुत बड़ा चिह्न बना हुआ है। कहते हैं कि पहले चट्टान में एक गुफ़ा थी, जो समुद्र से जुड़ी हुई थी। समुद्री पानी गुफ़ा के द्वारा लगातार बाहर से इसी क्षेत्र तक आ पहुंचता था। स्थानीय गांव धीरे-धीरे पानी में डूबने लगे। स्थिति बहुत भयावह थी। एक दिन बौद्ध धर्म के एक आचार्य यहां आए। ऐसी स्थिति को देखकर उन्होंने अपने हाथ को चट्टान पर बड़ी शक्ति से रखा, और तभी गुफ़ा बंद हो गई, उसके बाद समुद्री पानी यहां कभी नहीं आया। आज, एक वर्गमीटर के हाथ के आकार वाला चिह्न भी स्पष्ट देखा जा सकता है।
लांगमू मठ कानसू, छिंगहाई और स्छ्वान आदि तिब्बती बहुल क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध है। बौद्ध धर्म के बेशुमार अनुयायी पूजा करने यहां आते हैं। कभी कभार तिब्बत स्वायत्त प्रदेश से भीतरी क्षेत्र तक जाने वाले जीवित बुद्ध और लामा यहां ठहरते हैं। सुन्दर पठारीय प्राकृतिक दृश्य और विशेष तिब्बती संस्कृति के कारण लांगमू मठ देशी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है। जब हमारे संवाददाता की भेंट हॉलैंड से आए निकोलिन दंपत्ति से हुई, वे दोनों अभी-अभी पहाड़ के ऊपर आकर लांगमू मठ के द्वार के पास आराम कर रहे थे। पहाड़ की तलहटी पर स्थित लांगमू मठ कस्बे का दृश्य देखते हुए सुश्री निकोलिन ने कहा:
"हम अभी-अभी द्वार से प्रवेश हुए हैं। यहां का प्राकृतिक दृश्य बहुत सुन्दर है। बहुत सुन्दर, जो हॉलैंड के दृश्यों से अलग है। मैंने देखा कि बहुत ज्यादा लोग विभिन्न स्थलों से पूजा के लिए यहां आते हैं। अत्यंत विशेष लग रहा है।"
संवाददाता होलैंड के पर्यटकों के साथ
लांगमू मठ पश्चिमी देशों के पर्यटकों को ज्यादा आकर्षित करता है। इसका कारण एक अमेरिकी पादरी से संबंधित है। कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की लूछ्यु कांउटी के प्रसार विभाग के उप-प्रधान छन छांगयुन ने इसकी जानकारी देते हुए कहा:
"गत शताब्दी के 20 वाले दशक के आसपास, एक अमेरीकी पादरी लांगमू मठ क्षेत्र आए थे। वो यहां की विशेष रीति रिवाज़ और संस्कृति से प्रभावित हुए। लगता है कि यहां के लोग बहुत सीधे सादे हैं और प्राकृतिक दृश्य भी बहुत सुन्दर हैं। इस तरह यह पादरी यहां 15 सालों तक रह गए। स्वदेश वापस लौटने के बाद उन्होंने अपने तिब्बती बहुल क्षेत्र के जीवन के बारे में एक किताब लिखी, इसमें लांगमू मठ का परिचय दिया गया था। आज विश्व पर्यटन नक्शे में लांगमू मठ का निशान भी मिल सकता है।"
कहते हैं कि इस पादरी ने स्थानीय लोगों के जीवन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। सर्दियों में वह तिब्बती पोशाक पहनकर घोड़े पर सवार होकर स्थानीय वासियों के साथ शिकार करता था। गर्मियों में वह चरवाहों के साथ जौ की मदिरा पीते हुए तिब्बती क्वोच्वांग नृत्य करता था। पंद्रह वर्षों में पादरी बहुत नज़दीक से तिब्बती जाति के जीवन में भाग ले रहा था। आश्चर्यजनक प्रथाएं, सुन्दर प्राकृतिक दृश्य और सीधे सादे व्यक्ति...... यहां का जीवन उसके दिमाग में हमेशा अंकित हुआ है। स्वदेश लौटने के बाद उसने अपना अनुभव लिखकर एक पुस्तक प्रकाशित की। उसका उद्देश्य है कि ज्यादा से ज्यादा पश्चिमी लोग छिंगहाई तिब्बत पठार के पूर्व भाग में पहाड़, घास के मैदान, मठ और तिब्बती जाति की जानकारी हासिल कर सकेंगे।
मठ में खेलते हुए युवा भिक्षु
लूछ्यु कांउटी के प्रसार विभाग के उप-प्रधान छन छांगयुन के अनुसार हर वर्ष लांगमू मठ में बड़े पैमाने वाले धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, जिनमें चीनी पंचांग के अनुसार साल के प्रथम माह में आयोजित धार्मिक समारोह सबसे शानदार है। इसी दौरान मठ के सभी भिक्षु समारोह में भाग लेते हैं, वे बौद्ध सूत्र पढ़ते हैं, प्रार्थना करते हैं, बौद्ध सूत्र पर वार्ता करते हैं, धर्म नृत्य नाचते हैं, तिब्बती ऑपेरा का अभिनय करते हैं और शानदार बुद्ध तस्वीर चित्र दिखाते हैं। छन छांगयुन ने परिचय देते हुए कहा:
"हर वर्ष यहां आयोजित धार्मिक गतिविधियां बहुत ज्यादा होती हैं। चीनी पंचांग के अनुसार साल के प्रथम माह के 13वें दिन को बुद्ध तस्वीर दिखाने का उत्सव मनाया जाता है, सातवें माह के सातवें दिन को मीरारेबा धार्मिक नृत्य नाचते हैं। इसके अलावा यहां माओ लानमू नाम का धार्मिक समारोह भी आयोजित किया जाता है, जिसमें बुद्ध की तस्वीर दिखाना, धर्म नृत्य करना और घी के दीपक जलाना आदि गतिविधियां शामिल हैं।"
लांगमू मठ पहाड़ों के बीचोंबीच चुपके से खड़ा है। मठ इमारतों की छतों पर सोने रंग के धर्म चक्र और स्वर्ण हिरण सूर्य की किरणों में चमकदार है। हवा में फहरते हुए सूत्र झंडियां, इधर-उधर लगाए गए सफेद सूचक हादा, घी की सुगंध और सूत्र पढ़ने की आवाज़......ये सब मिलकर एक शांत वातावरण बनाते हैं। कभी कभार कई लाल कपड़े पहने तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु हाथ में सूत्र पुस्तक लेते हुए आ-जा रहे हैं। मठ के सामने घास के मैदान में कई बाल भिक्षु खेल रहे हैं। मठ में कई सड़कों पर दूर से आए चरवाहे सांष्टांग प्रणाम कर रहे हैं और कई बौद्ध धर्म के अनुयायी सूत्र चक्र घुमा रहे हैं। ऐसे वातावरण में लोगों को बहुत शांति मिलती है।