लाब्रांग मठ में भित्ति चित्र और थांगका चित्र बहुत मशहूर हैं। भित्ति चित्रों के विषयों में बौद्ध सूत्र से संबंधित कहानियां, बुद्ध मूर्ति, ऐतिहासिक व्यक्ति और चिकित्सीय विषयों से जुड़े चित्र शामिल हैं। इन भित्ति चित्रों का रंग आज भी ताज़ा है, ये देखने में बहुत सुन्दर और अद्भुत लगता है।
अपनी स्थापना से लेकर अब तक लाब्रांग मठ को तीन सौ वर्ष हो चुके हैं। प्राकृतिक असर, मानविकी नुक्सान और पर्यटकों की बढ़ोत्तरी जैसे कुछ कारणों से मठ के वास्तु-निर्माण और पर्यावरण को क्षति पहुंची। मठ में मूल्यवान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक अवशेषों और वास्तु-निर्माणों के संरक्षण और मठ के जीर्णोद्धार के लिए देश ने 30 करोड़ 50 लाख युआन की राशि लगाई।
मज़दूर मठ के मरम्मत में संलग्न
शाहे कांउटी के संस्कृति, खेल, रेडियो, फिल्म और टेलिवेज़न ब्यूरो के उप निर्देशक सोनान च्या ने जानकारी देते हुए कहा कि जीर्णोद्धार के दौरान मठ में सुरक्षित मूल्यवान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अवशेषों के पूर्व रूप को बनाए रखने वाला सिद्धांत अपनाया जाता है, जिससे मठ के विभिन्न भवनों की भित्ति चित्रों और थांगखा चित्रों का पुराना रूप नज़र आता है। सोनान च्या ने कहा:
"इस सिद्धांत के अनुसार जीर्णोद्धार हो जाने के बाद लाब्रांग मठ पहले की ही तरह होगा। अब 300 वर्ष बीत चुके हैं। मठ के कई भवनों में भित्ति चित्र और थांगखा चित्र छिंग राजवंश के खांगशी शासन काल में बनाई गई थीं, जिनका इतिहास बहुत पुराना है। हम संबंधित डिज़ाइन प्रस्तावों के मुताबिक इन्हें पानी से साफ़ करते हैं और नष्ट हुए भीत्ति चित्रों और थांगखा चित्रों का जीर्णोद्धार करते हैं। आम तौर पर चित्रों का रूप पहले के जैसा ही है।"
वर्तमान में लाब्रांग मठ का जीणोद्धार किए जाने के कारण कई भवन पर्यटकों के लिए खोले नहीं गए हैं। लेकिन हर दिन बहुत सारे पर्यटक और बौद्ध धर्म के अनुयायी यहां आते हैं। सोनान च्या के मुताबिक हर वर्ष करीब 6 लाख पर्यटक और दस लाख से अधिक अनुयायी मठ का दौरा करने और पूजा करने आते हैं। हॉलैंड से आई पर्यटक निकोलिन ने इस शानदार मठ को एक चमत्कार कहा। यहां उन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म का सांस्कृतिक वातावरण और अद्भुत इतिहास का बहुत अच्छा एहसास हुआ। निकोलिन ने कहा:
"मठ के एक भिक्षु ने हमें लेकर कई भवनों का दौरा किया। यहां बहुत सुन्दर है। वास्तु-निर्माण चमकदार, शानदार और रंगों से परिपूर्ण है। हमने पांच सौ भिक्षुओं के एक साथ सूत्र पढ़ने और पूजा करने वाले दृश्य को देखा, ये बहुत अविस्वमरणीय है। बाद में मेरे मित्र भी चीन की यात्रा पर आएंगे, मैं उन्हें यहां आने और शाहे का दौरा करने का सुझाव दूंगी। क्योंकि ये स्थान सचमुच बहुत सुन्दर है।"
लाब्रांग मठ के भिक्षु
वर्तमान में लाब्रांग में कुल 1300 से अधिक भिक्षु स्थाई रूप से रहते हैं। संन्यास और पढ़ाई के साथ-साथ वे मठ के जीर्णोद्धार और संरक्षण कार्य में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। भिक्षुओं से गठित सांस्कृतिक अवशेषों की प्रबंधन समिति शुरू से अंत तक जीर्णोद्धार परियोजना में हिस्सा लेगी। सोनान च्या ने परिचय देते हुए कहा कि जीर्णोद्धार के दौरान प्रबंधन समिति के भिक्षु अच्छे सुझाव और अच्छी राय पेश करतें हैं, जैसे मठ का जीर्णोद्धार कहां से शुरु करना है, पत्थर और लकड़ी की सामग्री कहां से खरीदना, मरम्मत करने वाले मज़दूर कहां से ढूंढ़ना आदि। इसके अलावा सांस्कृतिक अवशेषों की प्रबंधन समिति पूरी परियोजना के कार्यान्वयन, विशेष कर कच्ची सामग्रियों की खरीददारी और सांस्कृतिक अवशेषों की मरम्मत का चतुर्मुखी तौर पर निरीक्षण करती है। इसका परिचय देते हुए सोनान च्यान ने कहा:
"हम छिंगहाई में कुम्बुम मठ और तिब्बत में पोटाला महल की मरम्मत के दौरान प्राप्त अनुभव सीखते हैं। मरम्मत के दौरान लाब्रांग मठ के भिक्षु शुरू से अंत तक भाग लेते हैं। मेरा विचार है कि अगर मठ के सभी भिक्षु, बौद्ध धर्म के अनुयायियों और देश के संबंधित विशेषज्ञों से संतुष्ट हुए, तो मरम्मत को सफल कहा जा सकेगा। हम इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।"