वर्ष 1709 से लेकर अब तक लाब्रांग मठ का लगातार विस्तार हो रहा है। वर्तमान में इसका क्षेत्रफल 8 लाख वर्ग-मीटर है, जो आलिशान निर्माण समूह के रूप में सुरक्षित है, मठ में 90 से अधिक प्रमुख भवनों के अलावा दस हज़ार से अधिक संघाराम होते हैं। इस के अलावा लाब्रांग मठ में विभिन्न प्रकार वाले बौद्ध भवन, जीवित बुद्धों के निवास भवन और प्रवचन मंच, सूत्र प्रकाशन भवन और स्तूप भी होते हैं।
लाब्रांग मठ के अधीन छह बड़े बौद्ध शिक्षा संस्थान हैं, जिनमें एक प्रकारण शासन संप्रदाय और मंत्र संप्रदाय मिश्रित संस्थान और शुद्ध मंत्र संप्रदाय के पांच संस्थान शामिल हैं, इन संस्थानों में प्रकारण और मंत्रों का अभ्यास किया जाता है और खगोल और चिकित्सा विज्ञान जैसे विषयों में अध्ययन किया जाता है। प्रकारण का अभ्यास करने वाला वन सी नाम का संस्थान लाब्रांग मठ का केंद्र है, जिसमें चार हज़ार भिक्षु एक साथ सूत्र जाप कर सकते हैं। बौद्ध संस्थान के अलावा, लाब्रांग मठ में भिक्षुओं के लिए सामूहिक तौर पर सूत्र पढ़ने वाले 18 विशेष मंदिर भी स्थापित हुए हैं, जिनमें सबसे बड़ा मंदिर यानी शो शी नाम के मंदिर में बुद्ध शाक्यामुनी की 15 मीटर ऊंची मूर्ति रखी हुई है।
लाब्रांग मठ में हजारों मूल्यवान सांस्कृतिक अवशेष और 80 हजार बौद्ध धार्मिक ग्रंथ सुरक्षित रखे गए हैं। ये ग्रंथ दर्शनशास्त्र, तंत्र-मंत्र अभ्यास, चिकित्सा और औषधि, इतिहास, जीवित बुद्ध की कहानियां, खगोल जैसे दस किस्मों के हैं, जिनमें अनेक ग्रंथ तिब्बती लिपि बनाने और तिब्बती बौद्ध धर्म स्थापित होने के शुरूआती काल में लिखित दुर्लभ धरोहर हैं। जैसे गेलुग संप्रदाय के संस्थापक द्वारा लिखे गए ग्रंथ, दलाई लामाओं, पंचन लामाओं और विभिन्न बड़े बड़े जीवित बुद्धों के निबंध, संस्कृत से चीनी या तिब्बती में अनुवादित बौद्ध सूत्र आदि। इनमें भारतीय मुनि बोधिसत्व की लिखी तालपत्र सबसे मूल्यवान धरोहर मानी जाती है। लाब्रांग मठ में सुरक्षित ये सभी बौद्ध-ग्रंथ चीन की राष्ट्रीय धरोहर हैं, जिनपर विश्व बौद्ध जगत का व्यापक ध्यान भी आकर्षित हुआ है।
सो नानच्या इन्टरव्यू लेते हुए
कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती प्रिफेक्चर की शाहे कांउटी की संस्कृति, खेल, रेडियो, फिल्म और टेलिवीज़न ब्यूरो के उप निर्देशक सो नानच्या ने कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म में लाब्रांग मठ का अत्यंत उच्च स्थान होता है। उन्होंने कहा:
"लाब्रांग मठ कानसू, छिंगहाई और स्छ्वान तीनों प्रांतों के तिब्बती बहुल क्षेत्रों का राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र है। यह मठ गेलुग संप्रदाय के छह प्रमुख मठों में से एक है, जिसमें धर्म से जुड़े रीति रिवाज़ों और परम्पराएं सबसे अच्छी तरह सुरक्षित रखी गई हैं। आज तक छह बड़े बौद्ध शिक्षा संस्थानों में गेलुग संप्रदाय के संस्थापक गुरु त्सोंगखापा काल के प्रचलित रीति रिवाज़ भी जारी किये गए हैं और आगे जारी रहेंगे। लाब्रांग मठ सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं, सांस्कृतिक अवशेषों का खज़ाना और जातीय रीति रिवाज़ों का खजाना भी है। तिब्बती बौद्ध धर्म की संस्कृति का सार इस मठ में ही है।"
मूल्यवान बौद्ध सूत्रों के अलावा लाब्रांग मठ में बुद्घ की मूर्तियां भी विश्वविख्यात हैं, जिनमें एक इंच जितनी छोटी-छोटी मूर्तियों के साथ साथ 20 मीटर लम्बी और बड़ी-बड़ी मूर्तियां भी शामिल हैं। वर्तमान में सुरक्षित 8 मीटर लम्बी बुद्ध की 16 मूर्तियां हैं। ये बुद्ध मूर्तियां सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कुंदन, हाथीदांत, कोरल, सुलेमानी पत्थर, क्रिस्टल, जेड, चंदन की लकड़ी और मिट्टी आदि तरह तरह की सामग्रियों से बनाई गई हैं और बुद्ध मूर्तियां बनाने वाले कारीगर चीन, भारत, नेपाल और ईरान जैसे देशों से आए थे।
लाब्रांग मठ का दृश्य