पांच वर्ष बाद ऊ म्यी फूंग फिर एक बार तिब्बत आयीं, पर इधर पांच वर्षों में तिब्बत में हुए परिवर्तन को देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि 2004 में प्रथम बार तिब्बत के दौरे पर जब आयी, तो राज मार्गों का निर्माण पूरा नहीं हुआ, भवन निर्माण पुराने नजर आते थे और तिजारती माल भी पर्याप्त नहीं थे, बहुत ज्यादा चीजों की कमी थी। पर आज हर जगह पर नयी इमारतें कतारों में खड़ी हुई दिखाई देतीं ही नहीं, लम्बे चौड़े राजमार्ग बहुत साफसुथरे भी नजर आते हैं, जो तिजारती माल विकसित क्षेत्रों में बेचे जाते हैं, वे ल्हासा शहर में भी खरीदे जाते हैं।
वर्तमान जीवन की चर्चा करते हुए ऊ म्यी फूंग ने कहा कि अब वे बहुत सुखी हैं। उनका कहना है:"काफी सुखी हूं, यहां पर कोई दबाव नहीं है। सिंगापुर में हमेशा यह महसूस हुआ कि अपने ऊपर भारी दबाव दबा हुआ था। अब जब मैं घर वापस लौट जाती हूं, तो घर वाले लोग मुझ से यह कहते हैं कि देखने में तुम बहुत स्वस्थ लगती हो। इसलिये मैं कभी कभार अपने ऊपर काफी शंकित हूं कि बाद में मैं देश लौटने के बाद सामान्य रूप से काम करने लायक न हो जाऊं, यह एक बहुत कठिन सवाल है, मेरे लिये एक परीक्षा है।"
34 वर्षीय जोर्ग हेमबेल बहुत पहले ही तिब्बती सांस्कृतिक आकर्षण से प्रभावित हुए हैं, वे अपनी शोध विद्यार्थी अवधि से ही विशेष तौर पर तिब्बती धार्मिक इतिहास का अध्ययन करने में लगे हुए हैं। तिब्बत आने से पहले वे जर्मनी के हमबर्ग विश्वविद्यालय के एशिया अफ्रीका कालेज में पीएचडी कर रहे थे।